पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२७८

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शिवसिंह सरोज २५है। साने खींची कुभानु कोटि सिमति बखाने के कन्तम पुकारें सुश म मुनि सोर जब दुन्दुभी ठुकरें भगवन्त मरदाने के ॥ १ ॥ आछ महाद्वीनन को खि गो दया को सिन्धु आ ही गरीबन को सब गीथ जूटि गो । आज ब्रिजराजन को सकल अकाज भयो आज महाराजन को धीरज सो सृष्टि गो ॥ मल कः आज सब मंगन अनाथ भये आज ही अनाथन को करम सो फुटि गो । भूप भगवन्त मुरलोक को पयान कियो आज कवितान को कलप- तरु दृष्टिगो ॥ २ ॥ ५५१ मानिकचन्द जे जन सरन गये ते तारे । दीनदयाल प्रकूट पुरुषोत्तम विट्ठलनाथ लता रे । । जितनी रविछाया की कनिका तितने दोप हमारे । तुम्हरे चरनप्रताप तेज ते तेते ततचन तारे ॥ माला कंट तिलक माथे दै संव चक्र बहु धारे । मानिकचंद प्रभु के गुन ऐसे महापतित निस्तारे ॥ १ ॥ ५५२, मुनिलाल कवि प्रभा होत मानिटु ते उज्वल अनंत रूप मंत्र. मंत्र तंत्र तव सिद्धन समख हैं । हीरा से बलद सुठि सौहैं चंद मकरंद केनरासि जोहैं चाहें देवतन चख हैं ।कहै मुनिलाल ऐसो मोद मुवमेडल में जोज अंज पुष्ट चक्र अखितलख हैं ऐनक ते चोखे दरपन ने अनोखे सुधामोखे रामचंद जू के पाँयन के नख हैं ॥ १ ॥ ५५३ मानदास कवि ब्रजवाली द जागिये गोपाल लाल जननी बलि, जाई । उंठों तात भयो मात १ पूंजी