पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२६०

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शिवसिंहसरो ३४१ चम्पत्ति के लाल की झपन नंनत वादसाड़ी मारि बेर करी कांडू उमराव न करेरी करवाल की ॥ सुनि सुनि रीति घिरवैत के बड़प्पन की थप्पन उथप्पन की रीति छत्रसाल की । जंग जीति लेत्रा ते वे है के दामदेवा भूष सेवा लागे करन महेवामहिपाल की ॥७। दोहा-इक हाड़ा mदी धनी, मरद गहे करखाल । सालत औरंगजेब के, वे दोनों छत्रसाल ॥ १ ॥ ये देखौ छत्तापता) ये देखौ छत्रसाल । ये दिल्ली की ढाल थे, दिल्ली ढाहनवाल ॥ २ ॥ सारस से सूवा करवानक से साहजादे मोर से मुगुल मीर धीर में धर्च नहीं । बंगला से बंगस वलूच औ वलख ऐसे काविली कुलंग याते रनमें रखें नहीं ॥ अपन खेलत सितारे में सितार संभा सिवा को सुधन जाते दुवन सदै नहीं। बाजी सव बा की चपेटें चंगचहूं ओर ततर ट्रक दिल्ली भीतर बवै नहीं ॥ ८ ॥ राना भो चमेली और वेला सब राजा भये ठौरठौर रंस लेत नित यह काज है । सिगरे अमीर आमि कुन्द्र होत घर घर भ्रमत भ्रमर जैसे फूलन की साज है ॥भूषन भगत सिवरन बीर तू ही देसदेसन की राखी सब दक्खिन में लाज है । त्यागे सदा पटपद पद अनुमान जैसे अति नवरंगजेब ‘चम्षा सिवराज है ॥ कूम कमल कल दिन है कलिन्द मूल गवर गुलाब राना केतकी सुवाज है । तवर कनैर जाहीजूही पुनि चन्नावल पर पाँर गौर केंवेरे दाज है ॥ भून भनत मुथुकुन्द वड़गूजर वघेले हैं वसन्त सदा सुखद नेत्राज है । लेहूं रस एतन को वैठि न सक्त मुद्दे आति अवरंग, चम्पा सिवराज है ॥ १० ॥ साजि ग़ज़ वाजि सिवराज सैन सजत ही दिल्ली दल गही दिसा दीरघ दुवन की । तनिया न तिलक सुथानिया न