पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२५

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शिवसिंहसरोज

शिवलिंसहसरोज जाको जोबन जगमगात 1 बरस बरस अभरन रसबस लगि अबला तरुन दूनौ रस सरसात रस ॥ विद्याणु बाढ़ी जुवती 8 प्रता दू-नौ. कला सकल हिये में बसें आजम सदा सुहात । जैसे मनिमंदिर में छोटी बड़ी मनिन में एके रूप प्रतिबिंब पूरो सबको लखात } १ । ॥ १२. अहमद कवि दोहा-पीतम नहीं बजार में, वहै बनार उजार । पीतम मिले उजार में, वह उज़ार बजार ॥ ॥ १ कहा क वैकुंठ लै, कल्पवच्छ : की छाँह ।. आहमद ढाँख सुहावने, जहूँ पीतमगलवाँह ॥ २ ॥. गवन समय का गठो, कठो सुजान । प्रानपियारे मथम ही, पका तटैं कि मान ॥ ३ ॥ अहमद या मनसेदन में, हरि आर्मी केहि बाट । विकट बुरे जौलौं निपटखुले न कपटकाट ॥ ४ ॥ कहि आावत सोई विथा, उभी जु हित चित महैिं । आहमद घायल नरन को, वे कलार कल नाहैिं ॥ ५ ॥ अहमद गति अवतार की, कहत सवें संसार । वितरे मानुष फिरि , यहै जानि अवतार ॥ ६ ॥ सोरठा-खुद समुद्र समांन, यह अचरज कांसों कहाँ । हेनहार हेरान, अहमद आप आप में ॥ ७ ॥ १३. अनन्य कवि ( १ ) करम की नदी जार्म भरम के भर परें लहरेंमनोरथ की कोटिन गरत हैं । काम, शक, मद, महामोह सो मगर तामें क्रोध सो १ मद के मंदिर में ।