पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२२९

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शिवसिंहसरोज

२१० शिवसिंहसरोज n & 1 C ७ : y हाथ नचायत मुड़ खजावत पौरि खेड़ी रिस कोंकि बढ़ी ॥ ऐसी बनी नख ते सिख लौं जचंद ज्यों क्रोधसमुद्र से काढ़ी। ३४ लिए पिय को मुंह ताकत झुत सी भामिनि भौन में ठाढ़ी॥ २॥ फूलन की माला मोसों कप्त मुलायें ऐसीफूलन की माला मेलि राखत न क् गरें । मेरे दृग रोज ही बतायत सरोज ऐसे लेइ के सरोज रोज मन में न क्यों भे* ॥ हाँ तौ री न हों या बनमाली पास, वोई पिय आइ पास पाईं इत को न क्यों थैरें । मेरे मुख चंद सो बतावें ब्रजचंद रोज, कौ ब्रजचंद सों चंद देखियो क ॥ ३ ॥ खेलत फागु जु मेरी भट्ट इन बड़े चाइ ते बावरी नें हैं । केसरि के रंग की भरि सुंदरि डारत कामरी पिच हैं। त्यों ब्रजचंदजू सॉवरे गातन नावें मुगंधन की लपटें हैं । ये गुवा दाषिमाखन के ते कही कहाँ ते फगुवा तोदि दें हैं ।४।॥ आज पुखचंद पर राजत रुचिर विन्दु याही ब्रजद के विका वन सिताव की । छाजत छवीली छबि वरनीं न जात मोपें हरनी हिंदू जन के हिय के हिंताब की ॥ रति की न रंभा की न सची उरवसी की न) वारि वार डारियथतु उपमा किताब की । गालिब गुल।ब की न पंकज के आव की रही। न आफताब की न ताब महताब की ॥ ५ ॥ ४३. ब्रजनाथ कवि ( रItगमालाग्रन्थे ) दोहा-तिय चुन्वित मुखकीर दुति, कुंडल घरि सिर पाग । मालाधर संगीत गृह, प्राविसत मालव राग ५१॥ तमंचेगी कर को लिए, बैठी मूल रसल । स्याम आलिन स हँसाति है, मालसिरी श्रीराग ॥ २॥ १ कोमल । २ दुबले अंग वाली। ३ आम की जहमें ।