पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२२१

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२०२
शिवसिंहसरोज

२०२ शिवसिंहसरोज गुंजन कृषीदल के रंजन सो आये मानजन ये औजनबरन घंन ॥ १ ॥ औवा सी अवनि घंधी धूपरूप धूमकेतु अधी अंधयूप डाएं लोचन अवैसे कै। जमक जलाकन की नाकन की लोहू चढ़े व्याकुल जगत साँझ पाने जैसेतैसे के ॥ लोकपति क से उलूक से कत बेनी कुंजमाया जहाँतहाँ छाइ रही ऐसे के री कोठरी तखाने खसखानें जलखाने बिन ग्रीषम के बासर वितीत होत कैसे के ॥ २ ॥ खेलिवे को फाग देवदारा सी उत्तरि आई दीरथ दृगन देखि लागतीं न पलकें । खुलत दुकू भुज दरसत बर उन्नत डरोज हार हीरन के झलकें : बेनी कवि भू पर घरत पाँव मन्द मन्द आनन के ऊपर अनूप चेषि छल ।' लाल लाल रंग- मदन तरंगभरी बाल भरी आज़ंद गुलाल भरी पलकें ॥ हैं । नारी विन होत नर नारी विन होत नर राति सियराति उर लाये पयोधर में । बेनी कवि सीतल संमीर को सनाका सुनि सोचें संब साँझ ते कपाट सहर में ॥ पच्छी पच्छ जोरे रहें फूल फल थोरे हैं पाला के प्रकास आसपास धराघर में । बसन लपेटे रहैं. तऊ जाछ फटे रहें सीत के ससेटे लोग लेटे रहें घर में ॥ ४ ॥ घन मतवारे गज पौन हरकारे बक बीर निरघारे मोर ढढ़िन की तान पर 1 विच्छ बरछीन की चमक चहुंओरन ते त्यों नफीचे चात पुकारन प्रमान पर ॥ देखि देखि काँपत वियोगी जन कातर घु बेनी कवि कहै इन्द्रधनुष निसान पर । कोकिल की कुढ़क दुहाई फ़िरी टर-ौर पांवस प्रबल दंल ये महिमान पर ॥ ॥ कॅरि की बुराई चाल सिंह की बुराई लेक ससि को चुरायो मुख नासा चोरी कीर की । पिक को चुरायो चैन सुंग को चुराय नैन देसन अनार हाँसी गूजरी ऐंभीर की ॥ कहै कब बेनी १ अप्सरा । २ हवा । ३ हाथी ।