पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२२

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज ५.अयोध्याप्रसादवाजपेयी( सातनपुरवा ) साहित्यपुधासागरग्रंथ उड़िगे चकोर, मोर, खंज, रिलीमुख्य जोर जंग लगे उरग, ड तुरग,भूग,टविपनाइ| झख मारि मन हारि कंज कारि शूड़े वारि ऊपर परीन की परी न माह|| अवध अकल यों वहाल हर हल लाल सौति-साल वोलचाल वाह-वाह आहआए । लखत संबंत दसखत ये तखतं भाव वखतबलंद प्यारी तेरे नैन पाद- शाह ॥ १ ॥ घनस्थापम-घटा सी छटां सी दुकूल प्रकासंत अंध विलाजत ही। विन देखे छमा सी छमासी पला उपहाँसी की नसी न काजत ही॥ मृदु दाँसी की फाँसी में फाँसीं फिरै सुख सी दासी न सार्जत ही। विवि बाँसी गाँसी सिद्भा सी लिये नौ 1ाँसी विससीके केवाजत ही २ बाटिकाविहंगनपे, बारि’ा-तरंगन बै, वायुवेन गंगन मै व सुधा बगार है ! वाँकी वेनु-तानन मै, बँगले वितानैन है, वेस औधपानन , वीथिन वजार है,॥ वृन्दावनवेलिन फै, वनितानैवेलिन, ब्रजचन्द्र-केलिन पे बंशीवट मार है। वारि के कनाँकन फै, बहुलन बाँकन फै, बीजुरी बलाईन मै बरखा बहार है ॥ ३ ॥ हरखे हौल है आमरखे अनंग हेत करखे कलपी चोपि चांतक चंपू चली । उमड़े घटी हैं मांमि करने का हैं छटा फेरत पंटा हैं । ठटा सूर की हटाकिली ॥ चैरि है अड़े हैं, विन दन लड़े हैं। औध आनैद खड़े हैं देख दादुर वड़े दिली | कादंर वियों हरि चादर बलाक फेरि वादर बहादर को नादर फते मिली । ॥ ४ ॥ १ दो। २ नोक ३ पक्षी। ४ नदी । ५ घंट्रोवा।६ गली ।७ कणु । ८ यगले । & मोर ।