पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१८७

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१६८
शिवसिंहसरोज

१६८ शिसिंहसरोज नायक जुकधि कैसी बनी है कुठाट में। रज रही पंधन रजाई रही सीतकाल राई रही राई ने रनई रही भाठ में ॥ १ ॥ ३५६ नबी कवि मृग कैसे मीन कैसे खंजन प्रवीन कैसे अंजनसहित सितै-सित जलद से । चर से चकोर से कि चोखे कंडकोर से कि मदनमरोर से कि माते राते मद से ॥ नबी कवि नैना से की और नैन बैना से कि सीपड़े सलोना मध्य राखे ग्रुगमद से । पय से पथोधि से कि और सोंधे सौध से कि कारे भर के से , मनियारे कोकनद से ॥ १ ॥ ३५७. नागर कवि भादौं कि कारी गुंध्यारी निसा लखि बादर मन्द फुही बरावै । स्पामाजी आपनी ऊँची अटा मै छकी रसरीति मलारहि गाँवैध ॥ ता समै नागर के इग दूरि ते चातक स्वाति की मौजूहि पावै । पौन मया करि धंयुट टांगे दया करि दामिनी दीप दिखावे ॥ १ ॥ गाँस रॉसीली ये बातें छिपाइये इश्क ना गाइये गाइये हो लियाँ। गेंद बहाने न बीर चलाइये सूखे गुलाल उड़ाइये झोलियाँ ॥ लोग बुरे चतुरे लाख पाचेंगे दाब रहों दिल मीति कलोलिं। पॉइ परी जी डरो हूं टुक नागर ाइ करो जिन बोलियाँ-टोलियाँ २॥ देवन की औ रमापति की दोउ धाम की बेदन कीन बड़ाई। संखsरू चक्र गद पुनि पद्म सरूप चतुर्वेज की अधिकाई ॥ अमृतपान विमानन बैठियो नगर के जिय ने न भाई । बैकुंठ में होरी जु ना ितो कोरी कहा जे करें ठकुराई ॥ है । १ धूल ।२ मतलब यह कि भाट को ही अब राना कहते हैं, असल में राना कोई नहीं रहा। ३ सफ़ेद । ४ काले ।