पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१८

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आनंदरूपी लहरों में मग्न कर दिया । उधर श्री गामी तुलसी दास, केशवदास, बलभद्रब्रह्मराजा बीरवल, गंग, रहीम स्नानखाना, नरहरि, करन इत्यादि ने नव रस को दगसाहित्य: समेत और संस्कृत साहित्य के बड़ेबड़े ग्रंथों के ग्राशय भाषा में ऐसी विधि से प्रकट किये कि हरएक छोटे बड़े राजा -बाबू ग़नी- ग़रीब काs-श स्र के विनोद में काल व्यतीत करने लगे !. केशव-कृत कसिमिया ने सब संस्कृन के पंडितों को इस बात पर आरूककर दिया कि वे सब संस्कृत काव्य को छोड़ भापाकाम करनेलगे । इसी कारण संवत् १७२० में चिन्तामणि, मतिरामआप ण,कालिदात) कीन्द्र, दूलह, देवकरन, सुखदेव, श्रीपति, ठाकुरनित्रा न, बिहारीलाल, वीरतन, कन्द, बेनी मंडन, भगचंत)भोज,नृप शं, सुंदर, सूरत्ति मिश्र, देवीदास, मुवारकरसखान, र-म कविइत्यादि श्रेष्ठ कवियों ने भापाकाध केबड़ेबड़े अद्भुत शूथ बनाये ।संवत् १८०० में जैसे अच्छे कवि हुए, ऐसे किसी शतक के भीतरनहीं हुए थे । भिखारीदास ने इसी शतक में संस्कृत साहित्य कोभाषा में भलीभाँति से प्रकट किया । रघुनाथ, गोकुलनाथ, मणिदेवमुकुंदलाल, बनारसी, कुमार, किशोर) खुमान, एल रायदत्त, पदमा तर, गुमान, मित्र, चंदन रायतृप यशवन्त) शम्भुनाथ,विक्रम सुखदेव (२ ), देवकीनंदनजगनसिंह, शिव काषि,परतापसाहि, रूपसाहि, मृदव, सुवंश, शिवलाल, मून, बलदेवबनखंडी, रसलीन, बेनीमवीनपजनेप्त इत्यादि इसी शतक में होगये हैं । संवत् १९०० अर्थात् वर्तमान शतक में लाल त्रिपाठी,सरदार बनारसी, गणेश, विज़ देव, क्षितिपालदीनदयाल गिरि,राजा रणधीरसिंहराजा रघुराजसिंहक्षेत्र, बिहारीलालभोजइत्यादि बहुतेरे सत् कवि कैलाशासीहोचुके और बहुतेरे विद्यपान हैं!