पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१६८

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१४८ शिवसिंहसरोज नभमएडल में आये मनभावनःन सावन- की, झरिस में ITI कीन्हें विज, गयेसर्कुल सहस्रबाहु नहुषभुजंग भये सिचिका धराये ते ।भूपात परीक्ति को तत्छक प्रसिद्धईस्यो: जू गये जादवकुनर्ति उर आये ते॥ सगर की: संतति, नेक जरि- छार . इंद्र सहस भंग मुनि सपपाये ते । कहै कविदत को लि . न बरें कर्फ पाला . बिलाइजातचिपन सताये ते'३- ॥ टके जमाये कहानदी . नद न्ताये कहा कंदमूल खाये कहा बनोबास के किये । . के साये- कह द्वारका के जाये कहा छाप के लगायें कहां मालातुलसी लिये ॥ तिलक चकाये कहाः माला फिरये कहातीरनिनिहायें कहादाल दत्त के दिये । एतो सब किये कहा, कोठिं नाम लिये कहा जानकीजीवन जो , केवलः नहीं हिये ॥ ४ ॥ . ल्य।, हों ललन - कोटि कोटेिं छलझूलन सो जाकी जोर्तिदेखें मैनकों न मन भाइटे। सुखमा की सील मुङमारता की कहा कहाँ दत्त कर्षि पूरे नि ऐसी बाल पाइये ॥ दूरि है इगन को दाग याकेदेखत ही कलानिधि कांति कामकला सरसाइये ।उर ते उतारि उरांसीको पुररि उसी के समान उरबसी सी लगाइथे ॥ - 1 चम्दन चढ़ने ना लगावै: अंगुराग कलू चौसरा चैंबेलीर को नवेली भार क्यों सहै । पैन्हैनाड़ जवाहूिं जवाहिर से अंग दत्त: भौंरन के भंय भाज़ि मौन भीतरे गहै" राति: दिवस छवि छटा छहतीं चारु अंगना औनंगौ की न। ऐसी छवि का लहै कैसे वह चंदमुखी आंखें नंदनंद बंधु बधुन चकोरन के नैनन घिरी रहै ॥ ६ i ॥ लाऊँ कहा कळ हाथ लिये ही हाँ भर से लाल बहै जक लागी । । १ मय खानंद्रान । सपं। पालकी ।’ गौतम ऋषि का शाप t ' एक अंधेरा।६ कः गुहा.कासबेन ।