पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१५

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काव्य किरात कुमार, मेघदूत हू जानि । लघुत्रयी इनको नौ, कविजन कहत वखानि 1२६ ॥ हंसदूत इक काव्य है, दुर्घर्ट काव्य नवोन। । विद्वन्मेदतरंगिनी, भोजप्रवन्धहु गीन ॥ २७ ॥ रतिरहस्य सामुद्रिकटुकोकसार टू मानि । पंचसायत पुनि अर्नेगरेंग, कोकमंजरी जानि ॥ २८ ॥ अमरकोस पुनि मेदिनी, हेमधनंजय लेखि । रत्नकोस रत्नावली, विस्षकोस हू देखि ॥ २७ ॥ विस्चगुनाँदसकोस पुनि, एकाक्षरी वखानि । अनेकार्यध्वनिमंजरी, मानमंजरी मानि ॥ ३० ॥ और अनेकाअर्थ है, कास निघ हुईं जानि । और मातृकाकोस है, अच्छरूप बखामि ॥ ३१ ॥ इनुमतनाटक नाटकटुउत्तररामचरित्र । नाटक रघववीर नृतराघव बहुत पवित्र ॥ ३२ ॥ अनरघराघव नाटकहु, शबुधविीदय मानि। इतने युवरचरित के, नाटक उर में आनि ॥ ३३ ॥ पाकसास्त्र विद्या कला, सघ मिलि कविता 'साक् । ये पढ़िके वित पित्र अभ्यासंहि करि व्यक्ति ॥ ३४ ॥ भाषा काव्य का निर्णय महाराजा विक्रमादित्य के समय तक भाषा-काव्य का प्रचार किसी प्रबंध और तवारीख से नहीं पाया जाता । राजा भोज की सभा में ये नव महान् कवि थे - धन्वतरे, क्षेपणक, आमरसिंह, संरक बेताल घटकर्परकालिदास बराहमिहरवररुचि । वे भी संस्कृत के कवि थे, और कोई ग्रंथ भी उस समय का बनाया हुआ १-कठिन । २विश्वगुणाद । ३-प्रबोधचंद्रोदय ।