पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१३०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१११
शिवसिंहसरोज

शिसिंहंसरोज १११ रूप है अराल काजी पौन इनसाफ़ है सुगन्ध को आधार है । आली मिल पालम अजो न तोहैिं मालम 8 आयो जंग जालम बसंत फौजदार है ॥ १ ॥ २२८ जीवन कवि (१) जेल ब्रजचंद एतो छल कर रहै गैल राधिका नवेली बनी चैपे की कली नई । बाही खेरि’ आवै हरि हरवि निरखि फूले आजु ट है है कवि जीवन भली भई ॥ ताही मग थावत अचा न ही परी दीठि पुरि मुसत्रयाई उन दाहिनी गली लई। कहि रहे काहू नेक टाढ़ी होढ़ मुने जाहु सुनी है जू यूनी है । कहति चली गई । ॥ १ ॥ २२६. जय कवि भाट लखनऊ के जब तक है परदा ख़्वाब ग़लत का आँखों पर तो तक ज़त बादशाही वज़ीरी है । किसी वन चौक जावें। भूति परदे को उठावें रंग लाल नज़र आने होत रोशन दिल ऊंभीरी है ॥ जय कहत जहान वीच निगह सान फीकी कटु भावे नईि नीकी बुनि नौबत नफीरी है । तब आप हुआा मीरी क्या पश्म है अमीरी जिन्हें मुसाइबी ने भावे तिन्हें साहिवी फ़क़ीरी है.॥ १ ॥ २३०. युगराज कांवे सरस लगाई लाख लाइ लाइ पीरन सों ताइ ताइ नेई सों जतन कर जोरां मैं । एक एक बूरी चतुराई की बनाइ करि भली भाँति बहुरि गहरे रंग बोरा मैं ॥ लीजिये पहिरि आए चोप ों वलाइ ले॰ लागिहै निपट जुगराज अंग गोरा मैं । जाहि मन- भाई सब चाहती लुगाई सोई लाई हो तिहारे हेतु आये लाल जोरी मैं 11. १ ॥ \१ गली । ।