पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१२०

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसराज १०१ . अजतें भई। छीत कहै पीतमै चकैया मिली तू न मिली गैया तरु ह्रीं तेरी टेंव ना द्टी दई ॥ असैनई नई तेरी अरुनई नई भई चहचही बोली आली तू न बोली एवंई । मंदछवि भये चंद फूले अरबिंदर्भुद गई री विभावरी न रिस राधरी गई ॥ १॥ २०५छत स्वामी (२ ) गोकुलस्थ . रुपस्वरूप श्रीविट्ठलराय । बेदविदित पूरन पुरुषोत्तम श्रीवल्लभ ग्रह प्रकटे आयं ॥ लपटी पाग महारस भीने अंति सुंदर मन सहज सुभाय, । छीतस्वामि गिरिधरन श्रीविट्ठल अगनित महिमा कही न जाय ॥१ ॥ २०६, खेमकरन कवि ब्राह्मण धनौलीवाले नरिन्द छन्द मैं जिघनार तयार तरह ते रघुवर करत वियारी। अनुज समेत मनुजपति-मन्दिर सुरनरमुनिमनहारी ॥ वैठि बसंत शासन पासंन बासन की अधिकारी । गेहुआ थार कटोर कटोरी पंचपात्र अंतु झारी .१ ॥ २०७. छेदीराम कवि ( कविनेह पिंगल ) ददोहा- कमलेंज कप कमलुजा ) जाये तिय तियबंद । गोजगज कंह गोज भंवकरु भव करुभवछंद १॥ पद हिप सिंय षिय पिय पिया, मंगल मंगलगेह । तामें रत छेदी रहत, कविहित कृत कविनेह ॥ २.॥ मकर महीना पच्छ सित, सेंवत संर हर केह । जुग ग्रहवसुजिब कुर्जा दिवसजन्म लियो कधिनेह ॥३। २०८, ३म कधि यंदीजन डलमऊवाले थरनिं थरंनि धैरहरत दुनि रथ तरनि' पलई । १ रात्रि। २ श्रेष्ठ आसन । ३ कमल से पैदा ४ हुई ।५ लक्ष्मी।