(४)
१४ दलसिंह, किशोर, ग्वाल, निपटनिरंजन, कमंच इत्यादि
के संगृहीत पाँच संग्रह, और इनके सिवा २८ और संग्रह के ग्रंथ,
जिनमें सन्-संवत् नहीं लिखे ।
संस्कृतसाहित्यशास्त्र का निर्णय
अथ काव्य-लक्षण । ( काव्यविलासमते ) दोहा-गुन-जुत सब दूपन-रहित, सब्द-अर्थ रमनीय । स्वल्पअलंकृत काव्य को, लच्छन कहि कमनीय ॥
( काव्यप्रदीपमते )
अदभुत वाक्यहि ते जहाँ, उपजत अदभुत अर्थ। लोकोत्तर रचना जहाँ, सो कहि काव्य समर्थ ॥
( साहित्यदर्पणमते )
रस-जुत व्यंग्यप्रमान जहूँ,सब्द अरथ सुचि होई। उक्ति जुक्ति-भूपनसहित, काव्य कंहावै सोई ॥
(रसगंगाधरमते )
जहँ विभाव, अनुभाव पुनि, संचारी पुनि आाइ । करि विसिष्टता व्यंजना, स्वाद बढ़ावै भाइ ॥
( अथकाव्यप्रयोजन )
चारि बर्ग लहि जासु ते, आवत करतल मद्धि। सुनत सुखद, समुझत सुखद, वरनत सुखद सुमद्धि ॥
( विष्णुपुराणे )
काव्यालापाश्च ये केचिदी़यन्तेनाखिलेन च । शब्दमूर्तािधरस्येते विष्णोरंशामहात्मनः ॥ भाषा दोहा-करत काव्य जे जगत मैं, बानी अखिल वखानि ! सब्दमूर्ति ते जानिये, विष्णुअंस पहिचानि ॥