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शिवसिंहसरोज
आये घरै अरुनोदय होत सरोपं तिया इमि वैन कहे हैं । लाल भये हा कोरन आनि कै यों अँसुवा. नव बूंद रहे हैं।'चोंचन चापि मनों सिथिलै विवि खजन दाडिमवीज गहे हैं ॥४॥
जा के हेत जोगी जोग जुगुति अनेक करें जाकी महिमा न मन वचन के पथ की । औरन की कहा जाहि हेरि हर हारे जाहि जानिये को कहा विधि हू की बुधि न थकी॥ ताहि लै खेलाव गोद अवधनरेसनारी अवधि कहा है ताके आनंद अकथ की। जाके मायागुनन मुलायो सब जग ताहि पलना मैं ललना झुलावै दसरथ की॥१॥ हंसन के छौनो[१] स्वच्छ सोहत विछौना बीच होत गति योतिन की जोति जोन्ह जामिनी । सत्य कैसी ताग. सीता पूरन सुहाग थरी चली जयमाल लै मरालमंदगामिनी[२] ॥ जोई उरवसी सोई मूरति प्रतच्छ लसी चिंतामनि देखि हँसी संकर की भामिनी। मानौ सर्दचन्द चन्द मध्य अरविन्द अरविन्द मध्य विद्रुमं विदारि कढ़ी दामिनी॥२॥