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शिवसिंहसरोज

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शिवसिंहसरोज

उत सित चंदन अंग इतहि सित्कर लिलार भनि॥उतहि भाल मनिलाल इतहि दृग अनल विराजत।उत कपूर तन लेप भसम इत अति छवि छाजत।। कहि चिन्तामनि सम वेप धरि अति अनूप सोभा सहित।

जय साजहिं सरजा साहि कहँ गिरिजा हर अरथंग नित॥२॥ सिर ससिधर धर गौरि अरधंगधर जटाजूट गंगधर ना-मुंडमालधर। विपनिनिरासकर दीह दिसावासकर खलउरसूलकर डमरूत्रिसूल कर। सेवत अमरबर पग-सुरतरुवर देत हरबर चिन्तामनि को अभय वर। देह लसै विपहर मदनगरवहर त्रिपुर के मदहर जय जय देव हर।।३।।

(काव्यविवेक)
इक आजु मैं कुन्दनवेलि लखी मनमन्दिर को सुचि वृन्द भरै। कुरबिंद के एल्लव इंदु तहाँ अरविंदन ते मकरंद झरें । उन कुन्दन ते मुकतागन है फल संदर है पर पानि परे। लखी यों कहनाद्युति कंदकला नंदनंद सिलादव रूप धरै।।१।।

चिंतामनि कच कुच भार लंक लचकति सोहैं तन तनक वनक छविखान की। चपल विलास मद आलसवलित नैन ललित विलोकनि लसति मृदु वान की॥ नाक मुकताइल अधर रंग संग लीन्ही रुचि संध्याराग नखतन के प्रभान की। वदनकमल पर अलि ज्यों अलक लोल अमल कपोलन झलक मुसकान की॥२॥ सूची चितौनि चितै न सके औ सकै न तिरीछी चितौनि चितै। गुड़ियान को खेलिवो फीको लगै अरु कामकला को विलास कितै॥ लरिकापन जोवन संधि भई दुहुँ बैस को भाव. मिलै नं हित। बिवि चुंबक बीच को लोहो भयो मन जाइ सके न इतै न उतै॥३॥ राति रहे मनिलाल कहूँ रमि ह्याँ दुख वाल वियोग लहे हैं। १ श्वेत । २ चंद्रमा । ३ चंद्रकांत मणि । ४ अवस्था।