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शिवसिंहसरोज

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१७४. चंद कवि (३)
मद के भिखारी मीनमांस के अहारी रहैं सदा अनाचारी चारी लिखते लिखावते । नारी कुंल. धाम की न प्यारी परनारी. आगे विद्या पढ़ि पढ़ि हू कुविद्या मति धावते ।। आँखिन को काजर कलम से चोराय लेत ऐसे काम करें नेक संकहु न लावते । जोपै सिंहवाहनी निवाहनी न होती चंद कायथ कलंकी काके द्वारे गति पावते ॥ १॥
१७५ चंद कवि (४)
सोरठा-सुलतान महम्मदसाह नाम नवाव बखानिये ।

कविताई अति चाह करत रहंत गढ़ नगर में ॥ १ ॥ देस मालवा माहिं कुंडलिया करि संतसई । हरिगुन अधिक सराहि चंद कवीसुरतेहि सभा ॥ २ ॥

१७६. चोखे कवि
अमिली रहति काहे बरै सो हमेस अाली पीपर की डार गहे जोत नेम तेरो री । साजनो वताऊँ साख जा की आमनामा घनी एते परं करत करार जो घनेरो री ॥ चोखे कहै बारबार जा मुनि न पावै पार महुवा सो रिसातं आली ऊमर तरुं हेरो री । एरी कचनार तू वारवार कहर करै माहुली लगाये जात आँवरी वहेरोरी ॥१॥
.१७७. चतुरविहारी कवि

उनींदी आँच रंगभरी दुरत नहीं पट अोट । मीन ग्वजन संगहीन भये हैं और कमलदल वारि डारौं लख कोट ।। दुरत मुरत झपकत अनियारी चंचल करति हैं चोट । चतुरविहारी प्यारी की छवि निरखत वाँधत सुख की पोट ॥१॥ १ न मिली, पक्षांतर में इसी नामका वृक्ष । २ वर्ग और वर।