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शिवशम्भु के चिट्ठे


मर्जीके विरुद्ध जिद्दसे सब काम किये चले जाना ही शासन कहलाता है? एक काम तो ऐसा बतलाइये, जिसमें आपने जिद्द छोड़कर प्रजाकी बातपर ध्यान दिया हो। कैसर और ज़ार भी घेरने-घसीटनेसे प्रजाकी बात सुन लेते हैं; पर आप एक मौका तो ऐसा बतलाइये, जिसमें किसी अनुरोध या प्रार्थना सुननेके लिये प्रजाके लोगोंको आपने अपने निकट फटकने दिया हो और उनकी बात सुनी हो। नादिरशाहने जब दिल्लीमें कतलेआम किया, तो आसिफजाहके तलवार गलेमें डालकर प्रार्थना करनेपर उसने कतलेआम उसी दम रोक दिया। पर आठ करोड़ प्रजाके गिड़गिड़ा कर वंग-विच्छेद न करनेकी प्रार्थनापर अपने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया! इस समय आपकी शासन-अवधि पूरी हो गई है, तथापि वंग-विच्छेद किये बिना घर जाना आपको पसन्द नहीं है! नादिरसे भी बढ़कर आपकी जिद्द है। क्या आप समझते हैं कि आपकी जिद्द से प्रजाके जीमें दुःख नहीं होता? आप विचारिये तो एक आदमी को आपके कहनेपर पद न देनेपर आप नौकरी छोड़े जाते हैं, इस देश की प्रजाको भी यदि कहीं जानेको जगह होती, तो क्या वह नाराज होकर इस देशको छोड़ न जाती?

यहां की प्रजाने आपकी जिद्दका फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्दने इस देशकी प्रजाको पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहां तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए। यहांकी प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुःख और कष्टों की अपेक्षा परिणामका अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसारमें सब चीजोंका अन्त है। दुःखका समय भी एक दिन निकल जावेगा। इसीसे सब दु:खोंको झेलकर, पराधीनता सहकर भी वह जीती है। माइ लार्ड! इस कृतज्ञताकी भूमिकी महिमा आपने कुछ न समझी और न यहांकी दीन प्रजाकी श्रद्धा-भक्ति अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुःख है!

इस देशके शिक्षितोंको तो देखनेकी आपकी आंखोंको ताव नहीं। अनपढ़-गूंगी प्रजाका नाम कभी-कभी आपके मुंहसे निकल जाया करता है। उसी अनपढ़ प्रजामें नर सुलतान नामके एक राजकुमारका गीत गाया जाता है। एक बार अपनी विपदके कई साल सुलतानने नरवरगढ़ नामके एक स्थानमें काटे थे। वहां चौकीदारीसे लेकर उसे एक ऊंचे पद तक काम करना