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शिवशम्भु के चिट्ठे


वक्तृता देते समय दिवाला निकाल दिया। यह दिवाला तो इस देशमें हुआ। उधर विलायतमें आपके बार-बार इस्तीफा देने की धमकीने प्रकाश कर दिया कि जड़ हिल गई है। अन्तमें वहां भी आपको दिवालिया होना पड़ा और धीरता-गम्भीरताके साथ दृढ़ताको भी जलांजलि देना पड़ी। इस देशके हाकिम आपकी तालपर नाचते थे, राजा-महाराजा डोरी हिलानेसे सामने हाथ बांधे हाजिर होते थे। आपके एक इशारेमें प्रलय होती थी। कितने ही राजोंको मट्टीके खिलौनेकी भांति आपने तोड़-फोड़ डाला। कितने ही मट्टी-काठके खिलौने आपकी कृपाके जादूसे बड़े-बड़े पदाधिकारी बन गये। आपके एक इशारेमें इस देशकी शिक्षा पायमाल हो गई, स्वाधीनता उड़ गई। बंगदेशके सिरपर आरह रखा गया। ओह! इतने बड़े माइ लार्डका यह दरजा हुआ कि एक फौजी अफसर उनके इच्छित पदपर नियत न हो सका! और उनको उसी गुस्सेके मारे इस्तीफा दाखिल करना पड़ा, वह भी मंजूर हो गया! उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा गया, उल्टा उन्हींको निकल जानेका हुक्म मिला!

जिस प्रकार आपका बहुत ऊंचे चढ़कर गिरना यहांके निवासियों को दुःखिद कर रहा है, गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुःखित करता है। आपका पद छूट गया, तथापि आपका पीछा नहीं छूटा है। एक अदना क्लर्क, जिसे नौकरी छोड़नेके लिये एक महीनेका नोटिस मिल गया हो, नोटिसकी अवधिको बड़ी घृणासे काटता है। आपको इस समय अपने पदपर रहना कहां तक पसन्द है, यह आप ही जानते होंगे। अपनी दशापर आपको कैसी घृणा आती है, इस बात के जान लेनेका इस देशके वासियोंको अवसर नहीं मिला; पर पतन के पीछे इतनी उलझनमें पड़ते उन्होंने किसीको नहीं देखा।

माइ लार्ड! एक बार अपने कामोंकी ओर ध्यान दीजिये, आप किस कामको आये थे और क्या कर चले। शासकका प्रजाके प्रति कुछ तो कर्त्तव्य होता है, यह बात आप निश्चित मानते होंगे। सो कृपा करके बतलाइये, क्या कर्तव्य आप इस देशकी प्रजाके साथ पालन कर चले?क्या आंख बन्द करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुननेका नाम ही शासन है? क्या प्रजाकी बातपर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी