जगह देखते हैं, वहीं पड़ रहते हैं। बीमार होते हैं, तो सड़कों ही पर पड़े पांव पीटकर मर जाते हैं। कभी आग जलाकर खुले मैदानमें पड़े रहते हैं। कभी-कभी हलवाइयोंकी भट्ठियोंसे चमटकर रात काट देते हैं। नित्य इनकी दो-चार लाशें जहाँ-तहांसे पड़ी हुई पुलिस उठाती है। भला माइ लार्ड तक उनकी बात कौन पहुंचावे? दिल्ली-दरबारमें भी, जहां सारे भारत का वैभव एकत्र था, सैंकड़ों ऐसे लोग दिल्लीकी सड़कोंपर पड़े दिखाई देते थे; परन्तु उनकी ओर देखनेवाला कोई न था। यदि माइ लार्ड एक बार इन लोगोंको देख पाते, तो पूछनेको जगह हो जाती कि वह लोग भी ब्रिटिश राज्यके सिटीजन हैं वा नहीं? यदि हैं, तो कृपापूर्वक पता लगाइये कि उनके रहनेके स्थान कहां हैं और ब्रिटिश राज्यसे उनका क्या नाता है? क्या कहकर वह अपने राजा और उसके प्रतिनिधिको सम्बोधन करें? किन शब्दोंमें ब्रिटिश राज्यको असीस दें? क्या यों कहें कि जिस ब्रिटिश राज्यमें हम अपनी जन्मभूमिमें एक उंगल भूमिके अधिकारी नहीं, जिसमें हमारे शरीरको फटे चिथड़े भी नहीं जुड़े और न कभी पापी पेटको पूरा अन्न मिला, उस राज्यकी जय हो! उसका राजप्रतिनिधि हाथियोंका जुलूस निकालकर, सबसे बड़े हाथीपर चंवर-छत्र लगाकर निकले और स्वदेशमें जाकर प्रजाके सुखी होनेका डङ्का बजावे?
इस देशमें करोड़ों प्रजा ऐसी है, जिसके लोग जब संध्या-सबेरे किसी स्थानपर एकत्र होते हैं, तो महाराज विक्रमकी चर्चा करते हैं और उन राजा-महाराजाओंकी गुणावलीका वर्णन करते हैं, जो प्रजा का दुःख मिटाने और उनके अभावोंका पता लगानेके लिये रातको वेश बदलकर निकला करते थे। अकबरके प्रजापालन और बीरबलके लोकरञ्जनकी कहानियां कहकर वह जी बहलाते हैं और समझते हैं कि न्याय और सुखका समय बीत गया। अब वह राजा संसारमें उत्पन्न नहीं होते, जो प्रजाके सुख-दुःख की बातें उनके घरों में आकर पूछ जाते थे। महारानी विक्टोरियाको वह अवश्य जानते हैं कि वह महारानी थीं। अब उनके पुत्र उनकी जगह राजा और इस देश के प्रभु हुए हैं। उनको इस बात की खबर तक भी नहीं कि उनके प्रभुके कोई प्रतिनिधि हैं और वह इस देशके शासनके मालिक होते हैं तथा कभी-कभी इस देश की तीस करोड़ प्रजाका शासन करनेका घमण्ड भी