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शिवशम्भु के चिट्ठे

को यह बूढ़ा भंगड़ कभी सलाह नहीं दे सकता। श्रीमान् कैसे आली दिमाग शासक हैं, यह बात उनके उन लगातार कई व्याख्यानोंसे टपकी पड़ती है, जो श्रीमान् ने विलायत में दिये थे और जिनमें विलायतवासियों को यह समझाने की चेष्टा की थी कि हिन्दुस्थान क्या वस्तु है। आपने साफ दिखा दिया था कि विलायतवासी यह नहीं समझ सकते कि हिन्दुस्तान क्या है। हिन्दुस्थानको श्रीमान् स्वयं ही समझते हैं। समझते तो क्या समझते? विलायतमें उतना बड़ा हाथी कहां, जिसपर वह चंवर-छत्र लगाकर चढ़े थे? फिर कैसे समझा सकते कि वह किस उच्च श्रेणी के शासक हैं। यदि कोई ऐसा उपाय निकल सकता, जिसमें वह एक बार भारतको विलायत में खींच ले जा सकते, तो विलायतवालोंको समझा सकते कि भारत क्या है और श्रीमान् का शासन क्या? आश्चर्य नहीं, भविष्यमें ऐसा कुछ उपाय निकल आवे, क्योंकि विज्ञान अभी बहुत कुछ करेगा।

भारतवासी जरा भय न करें, उन्हें लार्ड कर्जनके शासन में कुछ करना न पड़ेगा।आनन्द-ही-आनन्द है। चैन से भंग पियो और मौजें उड़ाओ। नजीर खूब कह गया है:—

कूंडीके नकारेपै खुतकेका लगा डंका।
नित भंग पीके प्यारे दिन-रात बजा डंका॥
पर एक प्याला इस बूढ़े ब्राह्मण को देना भूल न जाना।

(भारतमित्र २६ नवम्बर सन् १९०४)


[३
]वैसराय का कर्त्तव्य

माइ लार्ड! आपने इस देश में फिर पदार्पण किया, इससे यह भूमि कृतार्थ हुई। विद्वान, बुद्धिमान और विचारशील पुरुषोंके चरण जिस भूमिपर पड़ते हैं, वह तीर्थ बन जाती है। आपमें उक्त तीन गुणोंके सिवा चौथा