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शिवशम्भु के चिट्ठे

आपने माई लार्ड! जबसे भारतवर्ष में पधारे हैं, बुलबुलोंका स्वप्न ही देखा है या सचमुच कोई करनेके योग्य काम भी किया है? खाली अपना खयाल ही पूरा किया है या यहाँकी प्रजाके लिए भी कुछ कर्तव्य पालन किया? एक बार यह बातें बड़ी धीरतासे मन में विचारिये। आपकी भारत में स्थितिकी अवधिके पाँच वर्ष पूरे हो गये। अब यदि आप कुछ दिन रहेंगे तो सूदमें, मूलधन समाप्त हो चुका। हिसाब कीजिए, नुमायशी कामों के सिवा कामकी बात आप कौन-सी कर चले हैं और भड़कबाजीके सिवा ड्यूटी और कर्तव्य की ओर आपका इस देशमें आकर कब ध्यान रहा है? इस बारके बजटकी वक्तृता ही आपके कर्त्तव्य-कालकी अन्तिम वक्त्तृता थी। जरा उसे पढ़ तो जाइये। फिर उसमें आपकी पाँच सालकी किस अच्छी करतूत का वर्णन करते हैं? आप बारम्बार अपने दो अति तुमतराकसे भरे कामोंका वर्णन करते हैं। एक विक्टोरिया-मेमोरियल हाल और दूसरा दिल्ली-दरबार। पर जरा विचारिये तो यह दोनों काम "शो" हुए या "ड्यूटी"? विक्टोरिया-मिमोरियल हाल चन्द पेट भरे अमीरोंके एक-दो बार देख आनेकी चीज होगी। उससे दरिद्रोंका कुछ दु:ख घट जावेगा या भारतीय प्रजाकी कुछ दशा उन्नत हो जावेगी, ऐसा तो आप भी न समझते होंगे।

अब दरबारीकी बात सुनिये कि क्या था। आपके खयालसे वह बहुत बड़ी चीज थी। पर भारतवासियों की दृष्टि में वह बुलबुलोंके स्वप्नसे बढ़ कर कुछ न था। जहाँ-जहाँसे वह जुलूसके हाथी आये, वहीं-वहीं सब लौट गए। जिस हाथीपर आप सुनहरी झूलें और सोनेका हौदा लगवाकर छत्रधारणपूर्वक सवार हुए थे, वह अपने कीमती असबाब-सहित जिसका था, उसके पास चला गया। आप भी जानते थे कि वह आपका नहीं और दर्शक भी जानते थे कि आपका नहीं। दरबारमें जिस सुनहरी सिंहासन पर विराजमान होकर आपने भारतके सब राजा-महाराजाओंकी सलामी ली थी, वह भी वहीं तक था और आप स्वयं भली-भांति जानते हैं कि वह आपका न था। वह भी जहां से आया था, वहीं चला गया। यह सब चीजें खाली नुमायशी थीं। भारतवर्षमें वह पहलेहीसे मौजूद थीं। क्या इन सबसे आपका कुछ गुण प्रकट हुआ? लोग विक्रमको याद करते हैं या