शिवशम्भु ने बड़ी स्पष्ट भाषा में कहा है कि अब राजा और प्रजा के मिल कर होली खेलने का समय गया। जो बाकी था, वह कश्मीर नरेश महाराज रणवीरसिंह के साथ समाप्त हो गया। माइलार्ड अपने शासनकाल का सुन्दर से सुन्दर सचित्र इतिहास स्वयं लिखवा सकते हैं, वह प्रजा के प्रेम की परवा क्यों करेंगे। फिर भी शिवशम्भु शर्मा अपने प्रभु तक संदेश पहुंचा देना चाहता है कि वह आपकी गूंगी प्रजा का एक वकील है और जिसके शिक्षित होकर मुंह खोलने तक आप कुछ करना नहीं चाहते।
लार्ड कर्जन को दो वर्ष का समय पूरा होने पर इंगलैंड वापस बुला लिया गया था। उसका जंगी लाट किचनर से विरोध हो गया था और ब्रिटिश सरकार ने कर्ज़न का त्यागपत्र स्वीकार कर किचनर की बात मानी थी। 'विदाई संभाषण' शीर्षक चिट्ठे में इस घटना को गुप्तजी ने बड़ीव्यंग्यमयी शैली में लिखा है। "अब देखते हैं कि जंगी लाट के मुकाबले में आपने पटखनी खाई, सिर के बल नीचे आ रहे। आपके स्वदेश में वही ऊंचे माने गए, आपको साफ नीचा देखना पड़ा, पदत्याग की धमकी से भी ऊंचे न हो सके।" स्वागत के समय जिन मार्मिक शब्दों में लार्ड कर्जन को परामर्श दिया गया है कि वे पठनीय हैं— "इस संसार के आरम्भ में बड़ा भारी पार्थक्य होने पर भी अंत में बड़ी भारी एकता है। समय अंत में सबको अपने मार्ग पर ले आता है। देशपति राजा और भिक्षा मांगकर पेट भरने वाले कंगाल का परिणाम एक ही होता है। कितने ही शासक और नरेश पृथ्वी पर हो गए। आज उनका कहीं पता-निशान नहीं है। थोड़े-थोड़े दिन अपनी नौबत बजा चले गए। आपमें शक्ति नहीं कि पिछले छह वर्षों को लौटा सकें या उनमें जो कुछ हुआ है उसे अन्यथा कर सकें। किंतु विदाई के समय पूरी दृढ़ता एवं निर्भीकता से कर्जन के शासनकाल को दु:खांत नाटक बताना उस समय के संपादक-धर्म का सर्वश्रेष्ठ निदर्शन है। "आपके शासनकाल का नाटक घोर दुःखांत है और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना प्रारंभ किया था, वह दुःखांत हो जाएगा।"
विदाई के समय लार्ड कर्जन को अपने क्रूर कृत्यों के लिए पश्चात्ताप नहीं हुआ। उसकी मनःस्थिति को समझकर शिवशम्भु ने कहा कि माइलार्ड