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( ६४ ) तुम्हारे लिए भी असाध्य होगा। तुम्हारा भाई तुम्हारा सिंहासन ले लेगा। तुम्हारी बालपन की संगिनी तुम्हें वाग्दान देकर भी धोखे में पड़कर दूसरे को हाथ पकड़ाएगी। तुम्हारे विश्वस्त सेवक थोड़े से धन के लोभ में आकर विश्वासघात करेंगे। तुम्हारे देश के लोग ही तुम्हें देश से भगा देंगे। विदेश में विदेशी लोग तुम्हें आग्रह के साथ बुलाएँगे । जो तुम्हारे दुःख-सुख के सच्चे साथी होंगे। तुम भाग्य के फेर से उन्हें न पहचानोगे। वे तुम्हारी उपेशा और लांछन सहकर भी अंत तक तुम्हारा साथ देंगे।" बालिका डर के मारे रोने लगी। दूसरा बालक भी सकपका गया था, उसका मुँह सूख गया था। किंतु शशांक कुछ भी न डरे। कुमार ने वृद्ध से पूछा "तुम क्या क्या कह गए, मैं नहीं समझा । तुम हो कौन ?” प्रश्न सुनकर वृद्ध ठठाकर हँस पड़ा और पागल की तरह नाचने लगा | बालिका चिल्ला कर रो पड़ी। माधवगुप्त भी रोने लगा। शशांक भय से दो कदम पीछे हट गए। वृद्ध ने हँसते-हँसते कहा "मैं कौन हूँ यह लल्ल से पूछना, वृद्ध यशोधवल से पूछना और अपने पिता से पूछना, कहना कि शक्रसेन यह सब कह गया है। मैंने जो कुछ कहा है उसे तुम समझ ही कैसे सकते हो ? जो होनेवाला है वह तो हो ही गा। जब तुम समझोगे तब मैं फिर आऊँगा।" वृद्ध फिर नाचने लगा। देखते देखते उसने कपड़े के नीचे से एक चमकता अस्त्र निकाला । शंशांक उसे देख दो कदम और पीछे हट गए । वृद्ध बोला "तुम हमारे शत्रु हो, तुम हमारे धर्म के शत्रु हो । जी चाहता है कि तुम्हारा कलेजा निकालकर तुम्हारा रक्त चूस लूँ। पर ऐसा करता क्यों नहीं जानते हो ? जो कालचक्र तुम्हें नचा रहा है वही मुझे भी नचा रहा है।" इतने में एक छोटी सी-नान आकर उस वांट के सामने लगी। उसपर से दो वृद्ध, एक युवक और एक बालिका उतरी। शशांक और