(५०) उसे गोद में उठा कर बाहर चले गए। उनके चले जाने पर महादेवी महासेनगुप्ता ने कहा “प्रभाकर ! मेरा विचार पूरा हो गया । कहो, कुछ कहा चाहते हो।” लजा से सिर झुका कर सम्राट ने कहा "माता ! मेरी ही भूल थी, क्षमा कीजिए। मैं अभी जाकर चंद्रेश्वर के दंड की व्यवस्था करता हूँ।" अाठवाँ परिच्छेद रोहिताश्व के गढ़पति रोहिताश्वगढ़ के भग्न प्राचीर पर बहुत से कौवे बैठ कर काँव काँव कर रहे हैं पर अभी गढ़वासियों की नींद नहीं टूटी है। कौवों के रोर से रग्घू की नींद खुली। उसने उठ कर देखा कि बूढ़ी नन्नी अभी पड़ी सो रही है । वह उसे खींच कर कहने लगा "जान पड़ता है कि कौवों के रोर से प्रभु जाग गए हैं। पहर भर दिन चढ़ा।" बिना दाँत की बुढ़िया आँख मलते-मलते उठ बैठी और हँस कर बोली “तू ज्यों-ज्यों बूढ़ा होता जाता है, देखती हूँ कि तेरी रसिकता बढ़ती जाती है। तू तो उठ बैठा है। जाकर कौवों को क्यों नहीं उड़ा देता ?” रग्घू के भी ओठों के एक किनारे पर हँसी दिखाई पड़ी और वह बोला “अच्छा तू. सोई रह, मैं कौवों को जाकर उड़ाए आता हूँ।” बूढ़ा उठ कर कोठरी के बाहर चला ही था कि एक बोरे से टकरा कर गिर पड़ा। बुढ़िया हाँ हाँ करके चिल्ला उठी। वह भूमि पर से उठे-उठे कि बोरा टेढ़ा हो
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