बालक- ( ४६ ) पिताजी हम लोगों को लेकर एक आम के पेड़ के नीचे ठहर गए । उस मार्ग से बहुत से अश्वारोही जा रहे थे। उनमें से कई एक को पेड़ की ओर आते देख ज्यों ही पिताजी पेड़ के नीचे से हट कर जाने लगे कि एक ने भाले से उन्हें मार गिराया।" महादेवी विनयसेन की ओर देख कर बोली "नायक रत्नसेन से कह दो कि जायँ ।" नायक तीन बार अभिवादन करके चले गए। बालक का जी जब कुछ ठिकाने आया तब महादेवी ने फिर पूछा “हाँ, तब उसके पीछे क्या हुआ ?" -अश्वारोही बहिन को लेकर चले गए। गदहा मुझे पीठ पर लिए भाग खड़ा हुआ। सबेरे एक बनिये ने मुझे देखा और इस नगर में ले आया। जो सैनिक यहाँ से अभी गया है उसने उसी बनिये के यहाँ से चावल लिया था और मैं बोझ पहुँचाने उसके साथ पड़ाव की ओर गया था। वहाँ अपनी बहिन को देख मैं लिपट गया । अंत में एक देवता मुझको यहाँ लाए।" सम्राट महासेनगुप्त सिंहासन पर से उठ खड़े हुए और बोले “देवि ! यज्ञवर्मा के पुत्र का पालन करना मेरा धर्म है। बच्चा ! अब तुम्हें कोई डर नहीं । अब से मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा।" बालक-पिताजी कहते थे कि यदि मैं मर जाऊँ तो, अनंत, तुम सम्राट महासेनगुप्त के यहाँ आश्रय लेना, और किसी के पास न जाना। आप कौन हैं मैं नहीं जानता । मैं तो सम्राट के पास जाऊँगा।" वृद्ध सम्राट के शीणं गंडस्थल पर अश्रुधारा बहने लगी। उनका गला भर आया। काँपते हुए स्वर से बोल उठे "हा ! मैं अपने प्राण- रक्षक को भूल गया, पर यज्ञवर्मा मुझेन भूले । पुत्र! मेरा ही नाम महासेनगुप्त है।" बालक सम्राट के पैरों पर लोट पड़ा। सम्राट ४
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