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( ४८ ) विनय-जितनी बात पूछी जाती है उतनी ही का उत्तर दे। वह क्या करती चुप हो रही । प्रभाकरवर्द्धन ने उससे पूछा- “यह लड़का तुम्हारा बेटा है ?” उस स्त्री को अपनी प्रगल्भता दिखाने का अवसर मिला । वह चिल्ला-चिल्ला कर रोने और कहने लगी "अरे, बाबा रे बाबा ! मेरे सात, चौदह पुरखों में कभी किसी को बेटा नहीं हुआ, सब लड़कियाँ ही हुई। मुँह जला न जाने कहाँ से जी का जंजाल एक छोकरा उठा लाया ?" प्रतीहार के डाँटने पर वह चुप हुई। महादेवी उसकी बातें सुन-सुन कर हँस रही थीं। उसके चुप होने पर वे फिर पूछने लगी “जिसे मुँह जला कह रही हो वह तुम्हारा पति है ?” स्त्री बोली “नारायण ! नारायण ! मेरे पति को मरे तो न जाने कितने दिन हुए। इसके साथ तो बहुत दिनों की जान-पहचान है। गाँव से सौदा-पत्तर लाकर मेरे यहाँ बेचा करता है और जब नगर में आता है तब मेरे ही घर टिकता है।" महादेवी ने कहा "बस, सब समझ गई, अब तुम जाओ।" स्त्री ने जी का धन पाया, बिना और कुछ कहे-सुने वह एक साँस में वहाँ से भागी। तब महादेवी ने उस बालक को गोद में बिठा कर पूछा "तुम लोग क्या चरणाद्रि से पाटलिपुत्र पैदल ही आते थे ?" बालक- हाँ, अवंतीवम्मी ने हम लोगों का जो कुछ या सब ले लिया। पिताजी के एक बूढ़े सेवक ने एक गदहा कहीं से लाकर दिया था । उसी पर चढ़ कर मैं अवंतीवर्मा के डर से छिप कर आ रहा था। बहिन और पिताजी पैदल ही आते थे।" महा०—फिर क्या हुआ ? बालक-एक दिन मार्ग में मानी बरसने लगा। किसी गाँव में पहुँचने के पहले ही दिन डूब गया और चारों ओर अँधेरा छा गया ।