रत्न०-हाँ। महा० -तुम क्या काम करते हो? पृथूदक की पदातिक सेना का नायक हूँ। महा० -तुम कल सबेरे किसी दूकान पर सीधा मोल लेने गए थे ? रत्न-हाँ! मेरे अधीनस्थ सेनाशतक का निरीक्षण हो जाने पर गौल्मिक की आज्ञा लेकर मैं इसी बालक के पिता की दूकान पर चावल दाल लेने गया था। महा.- -दूकानवाला इस लड़के का पिता है यह तुमने कैसे जाना ? -मैंने जो सामग्री ली थी उसका बोझ अधिक हो जाने पर दूकानदार ने कहा था कि मेरा लड़का तुम्हारे साथ जाकर इसे पहुँचा आएगा। महा.-तुमने और पहले भी इन दोनों को कभी देखा था । रत्न०-न। महा० -अच्छा, अब पीछे जाकर खड़े रहो। विनयसेन ! दूकान- दार यहाँ है ? विनय o-वह तो सौदा अंग गया हुआ है, उसकी रखेली यहाँ है। महा०-अच्छा उसीको लिवा लाओ। बालक- विनयसेन के चले जाने पर महादेवी ने बालक से पूछा- “तुम्हारा नाम क्या है ?" -अनंतवा। महा०-मौखरिवंशीय यज्ञवर्मा तुम्हारे पिता हैं ? बालक ने सिर हिलाकर कहा "हाँ" महा० -तुम लोग क्या चरणाद्रिगढ़ में रहते थे ?
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