( २५ ) जो मनुष्य वृक्ष के तले बैठे थे वे देखने में विदेशी और विशेषतः पंच- नद के जान पड़ते थे। उनमें से एक रह रह कर चमड़े के छोटे कुप्पे में से मद्य ढाल ढाल कर पीता और अपने साथियों को देता जाता था। उनमें से कोई बालिका की ओर कुछ ध्यान न देता था। बालक चावल दाल की गठरी सिर पर लिए उसी पेड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया, फिर बोझ उतार कर थोड़ा बैठ गया और इधर उधर ताकने लगा। उस समय बालिका टक लगाए सड़क की ओर देख रही थी । रंग विरंग के परिच्छेदों से सुसजित होकर बाजा बजाती हुई मगध की पदातिक सेना उस समय उस मार्ग से निकल रही थी। बालक की गठरी जहाँ की तहाँ पड़ी रही। वह धीरे धीरे बालिका की ओर बढ़ा और पास जाकर उसने पुकारा “बहिन !"। बालिका ने चकपकाकर उधर मुँह फेरा । देखते ही बालक उसके गले से लग गया । भाई और बहिन दोनों एक दूसरे के गले से लग कर सिसक सिसक कर रोने लगे। कुछ काल बीतने पर विदेशी सैनिकों की दृष्टि उन दोनों पर पड़ी। उन्होंने देखा कि एक से दो बंदी हो गए। जो व्यक्ति मद्य ढाल ढाल कर पी रहा था वह चकित होकर बालिका के पास उठ कर आया और थोड़ी देर ठगमारा सम्खड़ा रहा, फिर बोला "अरे तू ने इसे कहाँ से ला जुटाया " बालिका बिलखती बिलखती बोली “यह मेरा भाई है।' इतना सुनते ही वह कर्कश स्वर से बोला “यहाँ तेरे भाई साई का कुछ काम नहीं। उससे कह कि चला जाय ।" उसकी बात सुन कर बालिका चिल्ला उठी। बालक ने भी उसके सुर में सुर मिलाया। सैनिक ने उसका हाथ पकड़ कर खींचा। वह और भी चिल्लाने लगा “बहिन, मैं तुम्हें छोड़कर न जाऊँगा।" एक एक दो दो कर के लोग इकट्ठे होने लगे। एक ने पूछा “क्या हुआ ?" दूसरे ने पूछा “इन्हें क्यों मारते हो?" तीसरा आदर्मा चौथे से कहने लगा "देखो तो, उस बेचारी बालिका को कैसा बाँध रखा है।"
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