३८१) नहीं.! सब के सब अस्त्र लेकर सोए हुए थे। शंखध्वनि सुनते ही ने युद्ध के लिए उठ खड़े हुए। सम्राट के डेरे में उनके पलंग के पास ही अनंतवर्मा और रमापति सोए थे। वे जब वर्म धारण करके डेरे के बाहर निकले तब शिविर के चारों ओर युद्ध हो रहा था। असंख्य शत्रुसेना ने अँधेरे में चारों ओर से आकर शिविर पर याक्रमण किया था। शरीररक्षी सेना अपने प्राणों पर खेल युद्ध कर रही थी, पर किसी प्रकार इतनी अधिक सेना को हटा नहीं पाती थी। सम्राट को शिविर के बाहर देखते ही सब के सब जयध्वनि करने लगे। थोड़ी देर के लिए शत्रुसेन पीछे हटी, पर फिर तुरंत सहस्रां सैनिक मरते कटते शिविर में घुस आए । शरीररक्षी सेना हटने लगी। 9 बरछा सम्राट के डेरे के सामने शशांक, अनंतवम्मा और रमापति युद्ध करने लगे। शत्रुसेना चारों ओर से शिविर में घुस आई थी। शरीररक्षी हटते हटले सम्राट के शिविर की ओर सिमटते आते थे। इतने में सौ से ऊपर सैनिक अँधेरे में दूसरी ओर से आकर सम्राट पर सहसा टूट पड़े । एक लंबा तगड़ा वर्मधारी योद्धा उनका अगुवा था । उसने सम्राट को ताक कर बरछा चलाया । रमापति ने तुरंत सम्राट के आगे आकर बरछे को अपने ऊपर रोक लिया । रमापति की बाँह को छेदता निकल गया । रमापति मूर्छित होकर सम्राट के पैरों के पास गिर पड़े। इसी बीच अनंत वर्मा ने उस लंबे तडंगे योद्धा के मस्तक पर तलवार का वार किया। उसके माथे पर से शिर- स्त्राण नीचे गिर पड़ा। उसका मुँह देखते ही अनंतवमा उल्लास से चिल्ला उठे। शशांक ने पूछा “अनंत ! क्या हुआ ?” अनंतवमा उस दीर्वाकार योद्धा के सिर पर तलवार तान कर बोले “प्रभो! चंद्रेश्वर !" "कोन चंद्रेश्वर, अनंत !"
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