(३७६ ) कुमार भास्करवा वंगदेश के विद्रोहियों की सहायता से चटपट वालवल्लभी होते हुए भागीरथी की तटपर आ निकले। वसुमित्र ने मेघनाद के तट पर पहुँचकर देखा कि वंगदेश में उनका सामना करने के लिए कहीं कोई शत्रु नहीं है। पीछे उन्होंने सुना कि कामरूप की सारी सेना पश्चिम की ओर बढ़ गई है और लौटते समय उन्हें रोकने के लिए डटी हुई है। वसुमित्र ने युद्ध की तैयारी कर दी। युद्ध के आरंभ ही में उन्हें समाचार मिला कि भास्करवा ने स्वयं पंद्रह सहस्र अश्वारोंही लेकर कर्णसुवर्ण पर आक्रमण कर दिया है। जिस दिन भास्करवर्मा ने कर्णसुवर्ण नगर पर धावा किया उस दिन नगर में केवल वसुमित्र के दल के पाँच सहस्र पदातिक, और माधववर्मा के दल के एक सहस्र अश्वारोही तभा दो सौ नौसेना नदी तट पर थी। माधववा अश्वारोहियों को लेकर अँधेरे में शत्रुसेना को रोकने चले। नवीनदास अपने दो सौ माझियों को लेकर रविगुप्त के साथ नगर की रक्षा पर रहे। माधववा दो पहर रात तक आसरा देखते रहे, जब शत्रुसेना का कहीं पता न लगा तब बे नगर को लौट आए। उनके नगर में घुसते ही कर्णसुवर्ण नगर चारों ओर से घेर लिया गया। भास्करवमा ने बहुत दूर जाकर नदी पार किया और चुपचाप अपनी सारी सेना लेकर वे नगर के किनारे आ पहुँचे । सारी रात युद्ध होता रहा । नगर पर शत्रु का अधिकार न हो सका। रात ढलने पर दोनों पक्षों की सेना थककर विश्राम करने उस समय माधववा रविगुप्त के साथ परामर्श करने बैठे। पहली बात तो यह स्थिर हुई कि वसुमित्र के पास संवाद भेजा जाय, दूसरी बात यह कि नंडला वा रोहिताश्वगढ़ सहायता के लिए दूत भेजा जाय । सदर उस सम प्रतिधनदुर्ग में थे, अतः उनके पास संवाद भेजना व्यर्थ समझा गया। नवीनदास स्वयं वसुमित्र के पास लगी।
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