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(३७३ ) बैठ गए और वस्त्र के भीतर से खरिया निकालकर पत्थर पर अंक लिखने लगे । थोड़ी देर पीछे वज्राचार्य बोले "महाराज ! आपके हाथ से हर्षवर्द्धन का पराजय नहीं है। भारतवर्ष भर में केवल एक ही व्यक्ति है जो हर्षवर्द्धन को ध्वस्त करेगा-दक्षिणापथ का अधीश्वर चालुक्यराज पुलकेशी" । वज्राचार्य की बात पर शशांक को सहसा बृद्ध महानायक यशोध- बलदेव की मरते समय की यह बात याद आई कि विपचि पड़ने पर चालुक्यराज मंगलेश से सहायता माँगना"। मंगलेश तो उस समय मर चुके थे, द्वितीय पुलकेशी दक्षिण के सम्राट थे। शशांक ने मन ही मन चालुक्यराज के पास दूत भेजने का निश्चय किया । इसी बीच बज्रा- चार्य सहसा बोल उठे “महाराज ! मैं स्वयं वातापिपुर जाने को तैयार हूँ" , सम्राट ने विस्मित होकर कहा “प्रभो! आप तो अंतर्यामी जान पड़ते हैं । "महाराज ! जगत् में कोई अंतर्यामी नहीं है । भाषा जिस प्रकार लोगों के मन का भाव प्रकट करता है, आकृति भी अस्फुट रूप में मन का भाव प्रकट करती है" । "तो आप स्वयं दक्षिण जाने के लिए तैयार हैं ?" "कब ?" "आज ही” । उसी दिन संध्या को वज्राचार्य शक्रसेन सम्राट् शशांक नरेंद्रगुप्त दूत बनकर दक्षिण की ओर चल पड़े । के