होकर राजधानी से चल पड़े। भास्करवर्मा को परास्त करके माघववर्म्मा
दक्षिण कोशल पर अधिकार करने गए थे। वे कलिंग, दक्षिण कोशल,
और कोंकद मंडल पर अधिकार करके लौट आए। उन्होंने आकर
सुना कि सम्राट् और महावलाध्यक्ष ने प्रतिष्ठान की ओर यात्रा की है,
अवसर पाकर भास्करवर्मा ने वंगदेश पर फिर अधिकार कर लिया
है और वसुमित्र उनसे युद्ध करने के लिए गए हैं, वृद्ध महादंडनायक
रविगुप्त नगर की रक्षा कर रहे हैं । युद्ध में जयलाभ करके माधववर्मा
जल्दी जल्दी राजधानी की ओर बढ़ रहे थे, उनकी सेना पीछे धीरे धीरे
आ रही थी । कर्णसुवर्ण पहुँचकर उन्होंने देखा कि नगरदुर्ग की रक्षा
के लिए केवल पाँच सहस्त्र सेना रह गई है। वृद्ध महादंडनायक उन्हें
देख अत्यंत प्रसन्न हुए और उनके हाथ राजधानी सौंप निश्चित
हुए । माधववर्मा को राजधानी में इतनी थोड़ी सेना देखकर आश्चर्य
हुआ। उन्होंने दूत भेजकर अपनी सेना को चटपट कर्णसुवर्ण पहुँचने
की आज्ञा दी । सम्राट के राजधानी छोड़ते ही मगध और तीरभुक्ति
में विद्रोह खड़ा हुआ। वाराणसी और श्रावस्ती पर अधिकार कर चुकने
पर शशांक ने सुना कि तीरभुक्ति अधिकार से निकल गया और मगध
के बौद्धों हे रोहिताश्व और मंडलागढ़ को घेर रखा है। बड़ी कठिनता
से चरमाद्रि और प्रतिष्ठान का विद्रोह शांत करके उन्होंने सैन्यभीति को
मंडलागढ़ की ओर दौड़ाया। थानेश्वर की चढ़ाई के लिए मगध, गौड़
और वग से जो नई सेना इकट्ठी की गई थी उसे मगध और तीरभुक्ति
का विद्राह दमन करने में फँसी देख हर्षवर्द्धन निश्चित हुए ।
अपने को चारों ओर विपजाल से घिरा देख एक दिन शशांक को
वज्राचार्य शक्रसेन और उनकी भविष्यद्वाणी का स्मरण आया। बहुत
पहले गंगा के तट पर वृद्ध वज्राचार्य ने जो जो बातें कही थीं उनमें
से अधिकांश सत्य निकलीं। शशांक सोचने लगे कि इसी प्रकार और
आगे की बातें भी ठीक घटेंगी । सोचते सोचते वज्राचार्य से एक बार
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