( ३७०) लिया । माधववर्मा के कर्णसुवर्ण चले आने पर भास्करवा ने सारे वंगदेश को अपने हाथ में कर लिया। ऐसे समय में शशांक को नर- सिंहदत्त का अभाव बराबर खटकता और वे बार बार यशोधवलदेव, हृषीकेशशर्मा, नारायणशर्मा और विनयसेन ऐसे विश्वस्त कर्मचारियों का नाम लेकर दुखी होते । बहुत दिनों तक युद्ध चलते रहने से राजकोष भी खाली हो चला । जिन प्रदेशों पर माधवगुप्त का अधिकार हो गया था उन्होंने राजस्व देना बंद कर दिया। सम्राट को विवश होकर राजधानी की ओर लौटना पड़ा । उनकी आज्ञा से सैन्यभीति और वीरेंद्रसिंह विधुसेन के दोनों पौत्रों पर रोहिताश्वगढ़ की रक्षा का भार छोड़ प्रतिष्ठानपुर चले आए । शशांक अनंतवर्मा को प्रतिष्ठानदुर्ग में छोड़ आप कर्ण- सुवर्ण लौटना चाहते थे, पर नए महावलाध्यक्ष ऐसे समय में सम्राट का साथ छोड़ने पर सम्मत न हुए। शशांक कर्णसुवर्ण लौट आए। माधववर्मा भास्करवा को रोकने के लिए बढ़े। एक वर्ष के भीतर वंगदेश पर फिर अधिकार हो गया। भास्करवा शंकरनद के उस पार लौट गए । अनंतवा और वसुमित्र ने मगध और तीरभुक्ति के विद्रोहियों का दमन किया। माधवगुप्त भागकर कान्यकुब्ज- पहुँचे । साम्राज्य के कार्य फिर व्यवस्थित रूप से चलने लगे । राजस्व भी बरा- बर आने लगा । स्थाण्वीश्वर में फिर से चढ़ाई के लिए नई सेना भरती होने लगी। हर्षवर्द्धन को बौद्धाचार्यों से संवाद मिला कि सम्राट शीघ्रही थानेश्वर पर चढ़ाई करनेवाले हैं इसी बीच जिनेंद्रबुद्धि के कौशल से वाराणसी, चरणाद्रि और प्रतिष्ठान की प्रजा बिगड़ गई । थानेश्वर की सेना ने सैन्यभीति और बीरेंद्रसिंह को प्रतिष्ठानदुर्ग मे घेरकर श्रावस्ती, वाराणसी, चरणाद्रि और प्रतिष्ठानभुक्ति पर अधिकार कर लिया । शशांक और अनंतवा विवश -
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