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दसवाँ परिच्छेद द्वंद्व युद्ध प्रनिष्ठानपुर में आने पर शशांक ने सुना कि पिता की मृत्यु का संवाद पाकर राज्यवर्द्धन गांधार से लौट आए हैं; देवगुप्त ने कान्यकुब्ज पर अधिकार कर लिया है; मौखरि राजपुत्र ग्रहवमा युद्ध में मारे गए, उनकी रानी, प्रभाकरवर्द्धन की कन्या राज्यश्री, अपनी उदंडता के कारण कारागार में हैं । देवगुप्त कान्यकुब्ज पर अधिकार करके थानेश्वर की ओर बढ़ रहे हैं। शशांक को यह भी समाचार मिला कि देवगुप्त कान्यकुब्ज से चलते समय अनुरोध कर गए हैं कि सम्राट भी अपनी सेना सहित कुरुक्षेत्र में आ मिले । प्रतिष्ठानदुर्ग में ठहर कर शशांक नरसिंह की खोज करने लगे, पर इधर उधर बहुत ढूँढ़ने पर भी उनका कहीं पता न लगा। इसी बीच में संवाद आया कि हिमालय की तराई में गंगा के किनारे, हार खाकर देवगुप्त मालवे की ओर भागे और राज्यवर्द्धन सम्राट पर आक्रमण करने के लिए बड़े वेग से बढ़े चले आ रहे हैं। शशांक प्रतिष्ठा नदुर्ग छोड़ कर कान्यकुब्ज की ओर बढ़े। कान्यकुब्ज पहुँचने पर सम्राट को संवाद मिला कि थानेश्वर की सेना अभी बहुत दूर है। सम्राट ने नगर और दुर्ग पर अधिकार करके कान्यकुब्ज नगर के पश्चिम गंगा के किनारे प्राचीन शूकरक्षेत्र में पड़ाव डाला । ऐसा प्रसिद्ध है कि सत्ययुग में भगवान् का वाराह अवतार यहीं हुआ था । शूकर क्षेत्र बड़ा पुराना तीर्थ है । कुरुक्षेत्र के समान इसकी गिनती भी पुरासे रणक्षेत्रों में है । बहुत काल से मध्यदेश के राजाओं के भाग्य