यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३२६ ) का उत्तर दिया और उनमें से एकको पुकारकर कहा "सुरनाथ ! केवल एक अश्वारोही चरणाद्रिगढ़ से आया है। उसने कहा है कि सम्राट परसों संध्या को चरणाद्रिगढ़ पहुँचे हैं । वे कल सवेरे वहाँ से चले होंगे और आज तीसरे पहर तक यहाँ पहुँच जायगे'। सुरनाथ ने कहा "प्रभो ! यह अच्छा ही हुआ । सम्राट के आ जाने से बिना युद्ध के ही दुर्ग पुर अधिकार हो जायगा" पहले युवक ने सिर हिलाकर कहा “यह नहीं होगा, सुरनाथ ! आज ही जैसे हो वैसे दुर्ग पर अधिकार करना होगा । सम्राट अतिथि के रूप में दुर्ग में प्रवेश करेंगे"। सुरनाथ चकित होकर युवक का मुँह ताकते रह गए। युवक ने सेनानायकों को संबोधन करके कहा “वीर नायकगण ! दूत के मुंह से केवल यही संवाद मुझे मिला है कि आज तीसरे पहर सम्राट यहाँ पहुँच जायेंगे । मैंने यह स्थिर किया है कि आज ही दुर्ग पर अधिकार हो जाय । चाहे जिस प्रकार हो आज ही दुर्ग पर अधिकार करना होगा। जिस समय समुद्रगुप्त के वंशधर समुद्र गुप्त के दुर्ग में प्रवेश करें उस समय उन्हें रोकनेवाला कोई न रह जाय । नायकगण ! मैं तक्षदत्त का पुत्र हूँ। मैं खङ्ग स्पर्श करके कहता हूँ कि आज संध्या होने के पहले ही मैं समाट् के लिए दुर्ग में प्रवेश करने का पथ खोल दूंगा। मेरे साथ कौन कौन चलता है ? सैंकड़ों कंठों से शब्द निकला “मैं चलूंगा'। कोलाहल मिटने पर युवक ने कहा "केवल चलूँगा कहने से नहीं होगा। वीरो ! आज के युद्ध से लौटना नहीं है। या तो संध्या के पहले दुर्ग पर अधिकार होगा अथवा प्राकार या खाई के नीचे सब दिन के लिए विश्राम । जो जो आज हमारे साथ चलें वे खग स्पर्श करके शपथ करें कि कभी पीछे न फिरेंगे। दो एक वृद्ध सैनिक युवक की ओर बढ़े, पर युवक ने हाथ के संकेत से उन्हें लौट जाने की आज्ञा देकर कहा "भाइयो, मेरा अपराध