(१४) बीतने पर घोड़ों की टाप फिर सुनाई पड़ी। वृद्ध बहुत डरकर सड़क की ओर ताकने लगा। देखते देखते चार पाँच अश्वारोही वृक्ष के सामने आकर खड़े हो गए । उनमें से एक बोला "पानी बहुत बरस रहा है, चलो पेड़ के नीचे खड़े हो जायँ" यह सुन कर सब सड़क से उतरकर धान के खेत की ओर बढ़े। वृद्ध के दुर्भाग्य से बिजली चमकी और उसका लबा डील अश्वारोहियों की दृष्टि के सामने पड़ा । जो व्यक्ति आगे था वह बोला "देखो तो पेड़ के नीचे शूल हाथ में लिए कौन खड़ा है" उसकी बात सुनकर सब पेड़ की ओर बढ़े। वृद्ध डर कर पेड़ के नीचे से हट कर धान के खेत में हो रहा। एक सवार ने डपट- कर उसे आगे बढ़ने से रोका । उसकी बात पूरी भी न हो पाई थी कि पीछे से एक भाला आकर वृद्ध की छाती विदीर्ण करता हुआ गिरा। वृद्ध एक बार चिल्लाकर धान के गीले खेत में प्राणहीन होकर गिर पड़ा। पेड़ के नीचे से बालिका बड़े ज़ोर से चिल्ला उठी। गदहा भड़क कर भागने लगा । बालक अपने बल भर उसे थामे रहा । अश्वारोहियों ने पास जाकर देखा कि मृत पुरुष निरस्त्र और वृद्ध था । जिसे उन्होंने शूल समझा था वह उसके टेकने की लकड़ी थी। सब के सब मिलकर बरछा चलानेवाले बुराभला कहने लगे। किंतु वह लड़की का चिल्लाना सुनकर, अपने साथियों की बातों की ओर बिना कुछ ध्यान दिए, पेड़ की ओर लपका। कौंधे की चमक में उसने पेड़ से सटी हुई बालिका को देख पाया। देखते ही वह उल्लास के मारे साथियों को पुकार कर कहने लगा “देख जा! बूढ़े को मार कर मैंने क्या पाया । इसमें किसीका साझा नहीं रहेगा" । सुनते ही सब के सब दौड़ आए और बालिका को देखकर कहने लगे "चंद्रेश्वर ने सचमुच रत्न पाया"। बालिका शोक और भय से चिल्ला रही थी। बालिका पर अधिकार जतानेवाला सवार उसे उठाकर घोड़े की पीठ पर जा बैठा। पानी के कुछ थमने पर अश्वारोहियों ने फिर अपना मार्ग लिया ।
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