देखकर मैं सचमुच ही मर जाऊँगा । जिस समय मैंने सुना कि आज उसका विवाह है, आज वह मगध की राजराजेश्वरी होगी उसी समय मेरी राज्य की आकांक्षा, जीने की आकांक्षा सब दूर हो गई। युद्धयात्रा के पहले मैंने चित्रा के सामने शपथ खाई थी कि मैं लौटकर आऊँगा-इसी मगध में, इसी पाटलिपुत्र नगर में फिर आकर मिलूंगा। इसी लिए एक बार और देखने दिखाने के लिए मैं अंतःपुर में रात को ही पहुँचा । वाल्य किशोर, और युवावस्था की सब बातों को भूल जब वह माधव की अंकलक्ष्मी हुई तब मैंने विचारा कि अब एक क्षण भी यहाँ रहकर उसके जीवन में बाधा न डालूँगा-उसके सुख के मार्ग का कंटक न रहूँगा । इमासे एक बार उसे आँख भर देखने गया था। मन के आवेग को वह न रोक सकेगी, अपना प्राण दे देगी, इसका मुझे कुछ
भी ध्यान न था-”।
"माधव की अंकलक्ष्मी ! शशांक, यह कैसी बात कहते हो?"
"मैं ठीक कहता हूँ, नरसिंह ! माधव का विवाह हुआ यह बात तो तुमने मार्ग में ही सुनी होगी। मैं भेस बदलकर नगर में आया और मैंने सब उत्सव देखा । समय दो पहर का था । मुझसे एक नागरिक ने कहा कि तक्षदत्त की कन्या के साथ माधवगुप्त का विवाह हो रहा है। सारा संसार मुझे घूमता सा दिखाई पड़ने लगा, मेरी आँखों के सामने चिनगारियाँ सी छूटती दिखाई देने लगीं।
"तब तक तो विवाह नहीं हुआ था। शशांक ! तुम उसी समय प्रासाद में क्यों नहीं गए, उसी समय चित्रा से क्यों न जाकर मिले ?"
"मेरा अदृष्ट, नरसिंह ! और क्या कहूँ ? उस समय वम्र्म के भार से दबकर मैं धंसने लगा, पैरों पर खड़ा न रह सका । मैं पुराने मंदिर के पास की बावली पर जाकर पड़ गया। आते जाते नागरिक मुझे मद में चूर समझ हँसी ठट्ठा करते थे। चित्रा का विवाह माधव के साथ हो