लिए गिराए । अकस्मात् शशांक का नाम सुन कर वे चौंक पड़े और उठ खड़े हुए । फिर शब्द हुआ "महाराजाधिराज की जय", "महाराजाधिराज शशांक की जय ।" वृद्ध महानायक उन्मच के समान तोरण की ओर दौड़ पड़े। तोरण पर नंगे सिर एक युवक खड़ा था । वह उनके पैरों पर लोट गया । वे शशांक को हृदय से लगा कर मूर्छित हो गए। हरिगुप्त, रामगुप्त और नारायण शर्मा तोरण की ओर दौड़ पड़े । उन्होंने देखा कि सामने शशांक खड़े हैं । शशांक ने सबके चरण छुए जयध्वनि से बार बार सभामंडप गूंजने लगा। माधवगुप्त भी सिंहासन छोड़ उठ खड़े हुए। वीरेंद्रसिंह और विनयसेन यशोधवल की अचेत देह लेकर चले; पीछे पीछे शशांक, नारायण शर्मा, रामगुप्त, हरिगुप्त,अनंतवर्मा और वसुमित्र सभामडप में आए । सभासद लोग अपने अपने
आसनों पर से चकित होकर उठ खड़े हुए। सबको खड़े होते देख वृद्ध हृषीकेश शर्मा भी उठ खड़े हुए। सामने शशांक को देख वे चकपका उठे और तुरंत झपटकर उन्हें गले से लगा कहने लगे “पहचान लिया-तुम्हें पहचान लिया-तुम शशांक हो । शशांक लौट आए है- अरे, कोई है ? जाकर तुरंत महादेवी को बुला लाओ। मधुसूदन, नारायण, अनाथों के नाथ ! धन्य हो ! तुम जो चाहे सो करो, तुम्हारी महिमा कौन जान सकता है, प्रभो ! नारायण, हरिगुप्त ! महाराजाधिराज की बात ठीक निकली-शशांक लौट आए । महासेनगुप्त की बात कभी झूठ हो सकती थी ?" वे शशांक को बड़ी देर तक हृदय से लगाए रहे, उन्हें प्रणाम तक करने न दिया। चारों और जयध्वनि हो रही थी, पर बहरे के
कान में एक शब्द भी नहीं पड़ता था ।
धीरे धीरे यशोधवल को चेत हुआ। उन्होंने खड़े होकर कहा
"हृषीकेश ! नारायण ! कहाँ हो, भाई ? शशांक आ गए । महासेनगुप्त की बात पूरी हुई। महादेवा कहाँ है ? उन्हें झट से जाकर बुला । वृद्ध महामंत्री की श्रवणशक्ति कुछ अधिक हो पड़ी थी,