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सैनिक ठिठक कर खड़ा हो गया और पूछने लगा "चित्रादेवी का क्या हुआ ?" नागरिक ने कहा "तुम नगर में कब आए हो ? चित्रादेवी के साथही तो सम्राट् माधवगुप्त का विवाह है, तुम क्या अब तक नहीं जानते ?" सैनिक के सिर में चक्कर सा आ गया, वह गिरते गिरते बचा। पहले नागरिक ने कहा "गौड़ का वीर तो यहीं गिर रहा है" । दूसरा नागरिक बोला "भाई, निमंत्रण है। बिना पैसा कौड़ी के चोखा मद्य मिला, चढ़ा लिया" । सैनिक ने उनकी बात न सुनी । वह मतवाले के समान चलते चलते सड़क से लगी हुई एक बावली के किनारे बैठ गया। जान पड़ता है कि उसे तन मन की सुध न रही।

दिन तो बीत गया, संध्या हो चली, पर वह सैनिक वहाँ से न उठा। उसे मद में चूर समझ कोई उसके पास न गया। रात का पहला पहर बीता । प्रासाद में बड़ी धूम धाम और बाजे गाजे के साथ सम्राट का विवाह हो गया । उसके पीछे सैनिक को चेत हुआ। उसने शरीर पर से वर्म उतारकर बावली में फेंक दिया और एक दूकान से श्वेत वस्त्र मोल लिया। बावली के किनारे एक घने पेड़ की छाया के नीचे अँधेरे ही में बैठे बैठे उसने अपना वेश बदला और फिर प्रासाद की ओर चलने लगा।

प्रासाद में घुसकर वह भीड़ में मिल गया और धीरे धीरे अतःपुर की ओर बढ़ा । उसने एक ऐसा मार्ग पकड़ा जिसे और लोग नहीं जानते थे । इस प्रकार वह नए प्रासाद के अंतःपुर के दूसरे खंड में जा पहुँचा । उत्सव के आमोद प्रमोद में उन्मत्त स्त्रियों और अंत:-'पुररक्षियों ने उसे न देखा। गंगाद्वार के पास प्रासाद के जिस भाग के नीचे से गंगा जी बहती थीं सैनिक उसी भाग के दूसरे खंड की छत' पर चढ़कर अँधेरे में छिप रहा । अंतःपुर के उस भाग में उस समय

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