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सम्राट ने विस्मित होकर देखा कि कीचड़ लपेटे, भीगा वस्त्र पहने नवीन भूमि पर पड़ा है। उन्होंने आँखों में आँसू भर कर उसे उठा लिया और कहने लगे "नवीन! क्षमा कैसी, भाई! तुम उस समय पागल हो गए थे। मैं तो पागल था ही, तुम्हारे हृदय की वेदना को न समझ सका। तुम भव के साथ विवाह करो, भव तुम्हारी है"।

गले से छूट कर नवीन बोला "तुम सचमुच राजा हो, इतनी दया मैंने आजतक कहीं नहीं देखी। राजा! मैंने सुना है तुम देश जा रहे हो। मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा। मैंने तुम्हारा रक्त बहाया है। जब तक प्रायश्चित्त न करूँगा मेरे मन की आग न बुझेगी। नवीनदास आज से तुम्हारा क्रीतदास हुआ जब तुम देश में जाकर राजा हो जाओगे और मैं जीता रहूँगा तब लौटूंगा”। इतना कह कर नवीन सम्राट का पैर पकड़ कर बैठ गया। शशांक ने उसे उठा कर फिर गले से लगाया। उनका बहुमूल्य वस्त्र कीचड़ कीचड़ हो गया।

दूसरे दिन सबेरे शशांक ने सेना-सहित यात्रा की। यात्रा के समय दीनानाथ और नवीनदास सहस्रों माँझी ले कर साथ हो लिए। रात को ही भव न जाने कहाँ चली गई, उसका कहीं पता न लगा।


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