(२६०) सेनगुप्त से क्या कहूँगा ? सबसे बढ़ कर तो यह कि किस प्रकार समुद्रगुप्त के सिंहासन पर प्रभाकरवर्द्धन को बैठते देखू गा?" दोनों सैनिक कठपुतलो बने उन्मत्चप्राय महानायक की अवस्था देख रहे थे । दूर पर रेत में खड़ी कई सहत्र मांगध सेना चुपचाप आँखों में आँसू भरे वृद्ध की बात सुन रही थी। अकस्मात् अंधकार में करुण कंठ से किसी ने पुकारा "युवराज ! कहाँ हो ? मैं अभी बहुत अशक्त हूँ, आँखों से ठीक सुझाई नहीं पड़ता है। युवराज शशांक ! कहाँ जा छिपे हो ? निकल आओ। तुम्हारे लिए जी न जाने कैसा कर रहा है, बड़ा व्याकुलता हो रही है।" कंठस्वर सुनकर माधववा बोल उठे 'कौन, अनंत ?" क्षीण कंठ से कोई बोला "कौन, युवराज ? कहीं दिखाई नहीं पड़ते हो । अब तुम्हारे बिना एक क्षण नहीं रह सकता । अब छिपे मत रहो, निकल आओ। एक बार मैं आँख भर देख लूँ, फिर चाहे छिप जाना"। अनंतवा धीरे धीरे महानायक की ओर बढ़े। महानायक स्थिर न रह सके । वे चट बोल उठे "अनंत ! कुमार कहाँ हैं ?" उनका स्वर पहचानकर अनंत ने कहा "कौन, महानायक ? युवराज कहाँ हैं ? मुझे अभी अच्छी तरह दिखाई नहीं पड़ता है। ने उन्हें अपनी गोद में भर लिया। अनंत ने चकित होकर पूछा "महानायक! युवराज कहाँ हैं ?" महानायक का गला भर आया, किसी प्रकार वे बोले “मैं भी तो उन्हीं को ढूँढ़ रहा हूँ।" अंनत ने और भी अधिक विस्मित होकर कहा "युवराज क्या आपको भी नहीं दिखाई पड़ते हैं ?" माधव वर्मा ने धीरे-धीरे पास आकर अनंत का हाथ थाम लिया और कहा "अंनत ! यहाँ आओ।" अंनत वर्मा ने व्याकुल होकर पूछा "माधव ! युवराज कहाँ है ?" यशोधवल बालकों वृद्ध
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