चौदहवाँ परिच्छेद अनंतवर्मा का विद्रोह दूर तक << मेघनाद के किनारे रेत पर दो सैनिक दिन डूबने के पहले बैठे बातचीत कर रहे हैं। सामने फैला हुआ पड़ाव है। सहस्रों डेरे नदीतट की भूमि छेके हुए हैं। पेड़ों के नीचे आग जला जलाकर सैनिक रसोई बना रहे हैं । पहला सैनिक बोला भाई ! अब तो जी नहीं लगता। देश की ओर कब लौटना होगा, नहीं कह सकता। युवराज यदि बच गए होते तो लौटने की कोई बातचीत कही जा सकती। "हा | क्या सर्वनाश हुआ ! अब गुप्तसाम्राज्य डूबा ।" 'लक्षण तो ऐसे ही दिखाई पड़ते हैं । महानायक कहते हैं कि माधवगुप्त तो प्रभाकरवर्द्धन के क्रीतदास होकर रहेंगे, वे साम्राज्य न चला सकेंगे। "सम्राट के पास संवाद गया है ?" "अवश्य गया होगा"। "तुमने युवराज की मृत्यु का वृत्तांत सुना है ?" । युवराज की नाव पर के माझी अनंतवा और विद्याधरनंदी को लेकर लौटे हैं, उन्हीं के मुँह से सुना है”। "उन लोगों ने क्या कहा ?" "उन लोगों ने कहा कि एक दिन बहुत सी विद्रोही सेना ने आकर युवराज की सेना को घेर लिया। विद्याधरनंदी ने पीछे लौट चलने 66 "हाँ सुना
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