( २५२) न CG "चलो नाव पर थोड़ा घूम-फिर आएँ।" "मुझे अच्छा नहीं लगता।" "इतने दिन तो अच्छा लगता था ।" "मैं बहुत बकवाद करना नहीं चाहती।" जाल बुनने में भूल पड़ गई। दो ओर चिच बँट जाने से उसका ध्यान उचट गया था । नवीन ने पूछा "तुझे नाव पर चढ़ कर घूमना बहुत अच्छा लगता है, इसी से मैं तुझे बुलाने आया हूँ, चल न ।” "तेरे साथ बाहर निकलने से लोग भला-बुरा कहेंगे, जाऊँगी।" "इतने दिन भला-बुरा नहीं कहते थे, आज भला-बुरा कहेंगे।" “यह सब मैं कुछ नहीं जानती।" यही कह कर और चिड़चिड़ा कर उसने जाल हाथ से फेंक दिया और वहाँ से चली गई। युवक भी उदास होकर झोपड़े के आँगन से चला गया। जब युवती ने देखा कि वह युवक चला गया तब वह फिर लौट आई। पहला युवक ज्यों का त्यों बैठा था । उसने युवती से पूछा "भव ! नवीन चला क्यों गया?" "वह रूठ गया ।" "रूठ गया क्या?" भव हँसते-हँसते उसकी देह पर लोट गई। युवक चकपका कर उसकी ओर ताकता रह गया । भव ने पूछा “पागल ! तू क्या कुछ भी नहीं जानता ?" "न" "रूठना किसको कहते हैं ?"
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