( २३२) वर्मा को पीठ पर लिए घोड़ा नदी का तट छोड़ कर एक ओर भाग निकला। लाख चेष्टा करके भी भास्करवर्मा उसे न फेर सके, भयंकर शब्द सुन कर दोनों पक्षों की सेना ठक खड़ी रही। उठे हुए खड्ग उठे ही रह गए, लंबे-लंबे भाले लिए गौड़ीय सैनिक चक- पका कर चारों ओर ताकने लगे। युद्ध थम गया । सैनिकों ने चकित होकर देखा कि नद में कुछ दूर पर पहाड़ के समान खड़ा जल वेग से बढ़ता चला आ रहा है, सैकड़ों पेड़,पशु, पक्षी धारा में पड़ कर बहे चले आ रहे हैं। डरके मारे गौड़ीय सेना कगार पर जा खड़ी हुई । देखते-देखतें जल समूह आ पहुँचा । क्षण भर में कामरूप की विशाल सेना न जाने क्या हो गई। गौड़ीय सेना ने जहाँ तक हो सका शत्रु के सैनिकों का उद्धार किया। जल बराबर बढ़ता हुआ देख युवराज ने सैनिकों को घोड़ों पर सवार हो जाने की आज्ञा दी। देखते-देखते नद के दोनों ओर की भूमि दूर तक जलमग्न हो गई। उस पार केवल दो या तीन सहस्र सेना बच गई थी, वह भी भाग खड़ी हुई। गौड़ीय सेना ऊँची भूमि पर जा टिकी । पहले घाट पर युवराज जो सहस्र अश्वारोही छोड़ आए थे वे यथा साध्य सेतु बाँधने में वाधा दे रहे थे । इतने में बाढ़ आकर पुल को बहा ले गई। दोनों पक्षों की सेना ने ऊँची भूमि का आश्रय लेकर प्राण बचाए । दूसरे दिन सबेरे जब युवराज की सेना आकर उनके साथ मिली तब नदी के उस पार कोई नहीं दिखाई पड़ता था। बात यह थी कि भास्करवर्मा के साथ की सेना का भागना सुन कर उस स्थान पर जो सेना थी वह भी रात को ही भाग गई थी। वीरेंद्रसिंह शत्रु सेना आक्रमण की प्रतीक्षा कर रहे थे, पर काम- रूप की सेना ने नद पार करने का कोई प्रयत्न नहीं किया। बाढ़ का जल जिस समय अकस्मात् आकर फैल गया, और सैकड़ों सैनिकों की मृत देह आ-आ कर किनारे पर लगने लगी उस समय कामरूप की
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