(२३०) रात के पिछले पहर वृष्टि बंद हुई, हवा भी रुकी और नद का जल भी धीरे-धीरे घटने लगा। युवराज ने सेना नायकों को युद्ध के लिए प्रस्तुत होने की आज्ञा दी। नद के किनारे रक्षा के लिए अश्वारोहियों का प्रयोजन नहीं था इससे युवराज की आज्ञा से पाँच सौ अश्वारोही शेष सेना के घोड़ों को लेकर वन के भीतर जा रहे । ढाई हजार सेना युद्ध के लिए प्रस्तुत होकर नदी के तट पर आ खड़ी हुई। सबेरा होने के पहले ही कामरूप की सेना नद पार करने के लिए उठ खड़ी हुई। स्वयं भास्करवर्मा उस सेना दल का परिचालन करते थे। वे रात को आग जलती देख समझ गए थे कि उस पार शत्रुसेना पहुँच गई है। सूर्योदय के पहले ही उन्होंने सेना को बढ़ने की आज्ञा दी। सहस्रों सैनिक जयध्वनि करते हुए एक साथ नदी के शीतल जल में उतरे। दसवाँ परिच्छेद शंकरनद का युद्ध दो दिन पर आज सूर्य देव ने पूर्व की ओर दर्शन दिए हैं। भास्करवा की सेना का अधिकांश नद की बीच धारा में पहुँच चुका है। दूसरी ओर युवराज शशांक अपनी दो सहस्र सेना लिए पत्थर की चट्टान के समान शत्रु को रोकने के लिए निश्चल भाव से खड़े हैं । अश्वारोही सेना के पास धनुष वाण तो रहता नहीं कि वह दूर से शत्रु
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