क्या मैं राजा का पुत्र नहीं हूँ ?” बुड्ढे सैनिक ने हँस कर कहा "माधव ! तुम क्या जिस किसी को सुंदर देखोगे उसी से ब्याह करने को तैयार हो जाओगे?" जेठा भाई हँस पड़ा, बालक मर्माहत होकर धीरे-धीरे वहाँ से चला गया । ईसा की छठी शताब्दी के शेष भाग में गुप्तवंशी महासेनगुप्त मगध में राज्य करते थे। उस समय गुप्त साम्राज्य का प्रताप हो अस्त चुका था, समुद्रगुप्त के वंशधर सम्राट की उपाधि किसी प्रकार बनाए रखकर मगध और बंगदेश पर शासन करते थे। गुप्तसाम्राज्य का बहुत सा अंश औरों के हाथ में जा चुका था। आर्यावर्त में मौखरी वंश के राजाओं का एकाधिपत्य स्थापित हो गया था। ब्रह्मावर्त और पंचनद में स्थाण्वीश्वर का वैसक्षत्रिय राजवंश धीरे-धीरे अपना अधिकार बढ़ा रहा था। कामरूप देश तो बहुत पहले से स्वाधीन हो चुका था । वंग और समतट प्रदेश कभी-कभी अपने को साम्राज्य के अधीन मान लेते थे, पर सुयोग पाकर राज-कर भेजना बंद कर देते थे ! पिछले गुप्तसम्राट अपने वंश की प्राचीन राजधानी पाटिलपुत्र में ही निवास करते थे। भारतवर्ष की वह प्राचीन राजधानी ध्वंसोन्मुख हो रही थी, उसकी समृद्धि के दिन पूरे हो रहे थे। धीरे-धीरे कान्यकुब्ज का गौरवर वि उदित हो रहा था। आगे चलकर फिर कभी मगध की राजधानी भारतवर्ष की राजधानी न हुई। पाटिलपुत्र के पुराने बँडहर में बैठ कर पिछले गुप्तसम्राट् केवल साम्राज्य का स्वांग करते थे पर आसपास के प्रबल राजाओं से उन्हें सदा सशंक रहना पड़ता था। कुमारगुप्त और दामोदरगुप्त बड़ी-बड़ी कठिनाइयों से मौखरी राजाओं के हाथ से अपनी रक्षा कर सके थे । थोड़े ही दिनों में मौखरी राज्य नष्ट करके और पश्चिम प्रांत में हूणों को परास्त करके महासेनगुप्त के भांजे प्रभाकरवर्द्धन उचरापथ में सबसे अधिक प्रतापशाली हो गए थे। गुप्तवंश में सम्राट की पदवी अभी तक
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