. (२०६ ) पुकारा वह चकपकाकर उठ बैठा और महानायक को सामने खड़ा देख घबराकर नीचे खड़ा हो गया । महानायक ने पूछा “तुम्हारा भोजन हो गया ?" यदु ने कहा “हाँ, धर्मावतार ! कभी का । प्रभु ने इतनी दूर आने का कष्ट... यशो०-हाँ ! तुमसे कुछ काम है। यदु० -तो मैं बुला लिया गया होता । यशो० ro-बात बहुत गुप्त रखने की है, इसीसे मैं हो टहलता टहलता इधर चला आया। यदु०-प्रभु ! विराजेंगे? यदु ने एक फटा सा आसान लाकर भूमि पर बिछा दिया। महानायक उस पर बैठ गए और भट्ट से बोले “यदु ! तुम्हें एक काम करना होगा। यदु०-जो आज्ञा हो, प्रभु ! यशो०. To-हम लोगों के युद्धयात्रा करने के पहले एक दिन तुम्हें समुद्रगुप्त का गीत सुनाना होगा । तुम्हें स्मरण होगा कि जब हम लोग थे तब यात्रा के पहले तुम गीत सुनाया करते थे । यदु०-यह तो कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी, प्रभु ! समुद्रगुप्त की विजययात्रा के गीत मैं सैकड़ों बार गा चुका हूँ। यशो ro-सब कथा तो तुम्हें स्मरण है, न ? यदु-स्मरण कहाँ तक रह सकती है ? अब तो महाराज की आज्ञा से भट्ट चारणों का गाना बंद ही हो गया है; यदि भूल जाऊँ तो आश्चर्य ही क्या है ? महाराजाधिराज समुद्रगुप्त की प्रशस्तियाँ तो बहुत लोगों ने लिखी हैं, किसकी गाऊँ ? यशो-मैं तो समझता हूँ कि हरिषेण की प्रशस्ति सब से अच्छी है। तुम्हें स्मरण है, न ? युवा
पृष्ठ:शशांक.djvu/२२४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।