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(२००) अभिवादन करके चले गए; केवल यशोधवल सम्राट से कहने लगे "महाराज! कल रात को एक गुप्तचर पकड़ा गया है, सुना है ?" सम्राट-न। कहाँ पकड़ा गया ? यशो०-वह पिछली रात को नाव पर चढ़कर नगर से निकलने का यत्न कर रहा था, पर गौड़ीय नौसेना नाव समेत उसे पकड़ लाई। सम्राट्-वह क्या मगध का ही रहनेवाला है ? यशो-हमारे गुप्तचरों ने उसे पहचाना है । उसका नाम बुद्धश्री वह मगध का न होने पर भी साम्राज्य की प्रजा है। पिछली रात को जब महाराजाधिराज की आज्ञा से नौसेना प्रस्थान कर रही थी उसी समय साम्राज्य की नावों के साथ वह अपनी नाव मिलाकर नगर त्याग करने का प्रयत्न कर रहा था। पकड़े जाने पर बुद्धश्री कहने लगा कि मैं अंगदेश से वाराणसी जा रहा हूँ, वह मार्ग में ही पकड़ लिया गया है। गुप्तचरों ने संवाद दिया है कि वह इधर दो वर्ष से बराबर कपोतिक संघाराम में महास्थविर बुद्धघोष के पास रहता है। उसका क्या दंड विधान किया जाय ? सम्राट्-क्या दंड देना चाहते हो ? यशो० To-वह गुप्तचर है इसमें तो कोई संदेह नहीं। गुप्तचर न होता तो भेस बदलकर रात को चुपचाप नगर से निकलने की चेष्टा क्यों करता ? मेरा अनुमान है कि बुद्धघोष ने किसी उपाय से यह पता पाकर कि सेना चरणाद्रिगढ़ जा रही है इस पुरुष के द्वारा थानेश्वर संवाद भेजा था। बुद्धश्री बड़ा भयंकर मनुष्य है। पकड़े जाने के समय उसने दो मनुष्यों को घायल किया और कारागार में बड़ी साँसत सहकर भी अपना भेद नहीं दिया मैं उसे वही दंड देना चाहता हूँ जो गुप्तचरों को देना चाहिए । सम्राट्-क्या, प्राणदंड ?