(१६४) होगा?" तरला ने हँस कर कहा “विवाह ।" यूथिका ने उसका मुँह चूम कर पूछा “कब ?" तरला-अभी। यूथिका-किसके साथ? तरला क्यों ? मेरे साथ । यूथिका-तेरे साथ ब्याह तो न जाने कब का हो चुका है। तरला-तो फिर अब और क्या होगा ? क्या दो के साथ करोगी? यूथिका-तेरे मुँह में लगे आग, तुझे जब देखो रसरंग ही सूझा रहता है। बोल ! क्या मैं अब यों ही मरूँगी? तरला-मरे तुम्हारा बैरी । तुम मर जाओगी तो सेठ के में रासलीला कौन करेगा? यूथिका-रासलीला करेंगे यमराज । तरला, सच कहती हूँ अब मैं मरा ही चाहती हूँ। देखती हूँ कि मेरे दिन अब पूरे हो गए । तीन बरस बीत गए; इस बीच एक क्षण के लिए भी उनके साथ देखादेखी नहीं हुई । अब अंतिम बार देख लेती, यही बड़ी भारी इच्छा है । यूथिका से और आगे कुछ बोला न गया, उसका गला भर आया। वह अपनी वाल्यसखी की गोद में मुँह छिपाकर रोने लगी! तरला ने किसी प्रकार उसे समझाकर शांत किया और कहा “छि: बहिन, इतनी अधीर क्यों होती हो ? वे छूट गए हैं, कुशल आनंद से हैं । तुम्हारे ही लिए इतना सब करके मैंने उन्हें छुड़ाया है। इस समय वे श्रीयशोधवलदेव के सब से अधिक विश्वासपात्र हैं। महानायक उन्हें बहुत चाहते हैं । यह सब समाचार मैं तुम्हारे पास पहले भेज चुका हूँ। यूथिका-ये सब बातें तो मैं सुन चुकी हूँ। पर उनका छूटना तो इस समय विष हो रहा है। पिता जी कहते हैं कि स्त्री के लिए जिसने संघ का आश्रय छोड़ दिया, पवित्र कषाय वस्त्र त्याग दिया उसे
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