(१६०) गुप्तचर हैं, पर उनमें से एक भी कोई संवाद लेकर मेरे पास नहीं आया। सम्राट के पास भी मैंने एक निवेदन भेजा है कि संघ के कार्य में बड़ी बाधा पड़ रही है, उसका भी कुछ फल नहीं । बात यह है कि महादेवी अभी जीवित हैं । महास्थविर की बात पूरी भी न हो पाई थी कि पूर्वोक्त भिक्खु एक और बुड्ढे और दुबले-पतले भिक्खु को साथ लिए कोठरी में आया । साथ आए हुए भिक्खु ने महास्थविर को प्रणाम किया। उन्होंने कहा "आचार्य ! तुम्हें एक विशेष कार्य से इसी समय बाहर जाना होगा । एक संवाद है जिसे प्रतिष्ठानपुर या कान्यकुब्ज पहुँचाना होगा। आज रात को बहुत से अश्वारोही चरणाद्रि की ओर गए हैं, यह बात स्थाण्वीश्वर के किसी सेनानायक के कान में डालनी होगी। प्रतीहार आज रात को किसी को नगर के बाहर नहीं जाने देते हैं, पर संवाद लेकर आज रात को ही जाना चाहिए । तुम किसी युक्ति से रात हो को प्रस्थान कर सकते हो?" आचार्य-मैं चेष्टा करके देखता हूँ। -किस मार्ग से जाओगे? आचार्य -स्थल मार्ग से जाना तो सम्भव नहीं, नदी के मार्ग से निकलने का प्रयत्न करूँगा । महा०-बहुत ठीक । नयसेन ! तुम गंगा तट तक आचार्य को पहुँचा आओ। आचार्य बुद्धश्री और नयसेन महास्थविर को प्रणाम करके कोठरी से बाहर निकले। महा०-
- थानेश्वर के प्रभाकरवर्द्धन ।